हिंदू कानून के तहत भरण-पोषण का उत्तरदायित्व

जैविक/दत्तक माता-पिता जो हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हैं और वृद्ध हैं, तो वे ‘हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण’ अधिनियम, 1956 के तहत अपने वयस्क संतानों से भरण-पोषण की मांग सकते हैं, यदि वे अपनी आय या संपत्ति से खुद का देखभाल करने में असमर्थ हैं। उनके बेटे या बेटी, यदि अब इस दुनियाँ में नहीं हैं, फिर भी माता-पिता अपने भरण-पोषण का दावा, अपने मृतक संतान के धन और संपत्तियों से कर सकते हैं।

इस्लामी निकाह के लिए योग्यता का मापदंड क्या हैं?

निकाह, कानूनी रूप से इस्लामी निकाह तब माना जायेगा जब वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करेगा:

उम्र

एक जोड़ा तभी निकाह कर सकता है यदि वह दोनों युवावस्था (आमतौर पर 15 वर्ष) प्राप्त कर चुके हों।

मानसिक स्थिति

मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति निकाह कर सकता है अगर उसके सरंक्षक ने निकाह के लिए अनुमति दे दी हो। ‘सहमति देना’ या निकाह करने के लिए सहमत होना इस्लामी निकाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि यह माना जाता है कि मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति में निकाह करने की क्षमता नहीं है, लेकिन अगर सरंक्षक इसके लिए सहमत हो तो कानून ऐसे निकाह की अनुमति देता है।

नाबालिग

एक लड़का या लड़की जो युवा नहीं है या नाबालिग है वह निकाह के लिए संविदा नहीं कर सकते, लेकिन उनके सरंक्षक यौवन प्राप्त करने के बाद उनके निकाह के लिए संविदा कर सकते हैं।

रिश्ते की स्थिति और हिंदू विवाह कानून

विवाह के समय, आपका जीवन साथी ऐसा नहीं होना चाहिए जिसने अपनी पिछली जीवन साथी को तलाक नहीं दिया है। इसका मतलब है कि यदि आप तलाकशुदा हैं तो आप दुबारा तब शादी कर सकते हैं जब आपका तलाक सभी तरीकों से पूर्ण हो गया हो।

विवाह के समय किसी भी पक्ष का जीवन साथी नहीं होना चाहिए। यदि आप किसी के साथ शादी कर चुके हैं जो किसी दूसरे से विवाह करने का प्रयास कर रहा है, तो आप अदालत में ‘सिविल निषेधाज्ञा’ का मामला दायर करके अपने जीवन साथी को विवाह करने से रोकने की कोशिश कर सकते हैं।

आपको यह भी मालूम होना चाहिए कि ऐसे में जबकि आपका पहला जीवन साथी अभी भी जीवित है किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करना अपराध है – आपका पहला जीवन साथी आपके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करा सकता है। यह द्विविवाह का कृत्य है। यह कोई आसान प्रक्रिया नहीं है क्योंकि पहले जीवन साथी को ठोस सबूत पेश करना होगा – एडल्टरी या दूसरे विवाह से जन्म लेने वाला बच्चा भी पर्याप्त नहीं है।

यदि यह साबित हो जाता है, तो आप 10 वर्ष के लिए जेल जा सकते हैं और आपको जुर्माना भी देना होगा।

‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता’ (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसेड्यूर) के तहत भरण-पोषण

‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता’ की धारा 125 के तहत यदि पर्याप्त संसाधनों वाला कोई व्यक्ति अपने माता-पिता को, जो अपने भरण-पोषण के लिये स्वयं को असमर्थ पाते हैं, उनकी देखभाल करने से मना करता है या अनदेखा करता है तो प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को भरण-पोषण के लिए उन्हें मासिक भत्ता देने के लिए आदेश दे सकता है।

इस्लामी निकाह के लिए आवश्यक शर्तें क्या हैं?

निकाह को वैध बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम हैं जिनका पालन आवश्यक है :

प्रस्ताव और स्वीकृति

वैध निकाह के लिए एक व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से एक प्रस्ताव रखा जाना चाहिए और इसे दूसरे द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।

सहमति

वैध निकाह के लिए सहमति एक बहुत ही महत्वपूर्ण मापदंड है और यह मापदंड अलग-अलग सम्प्रदायों की कानूनी विचारधाराओं के अनुसार बदल जाता है।

गवाह

गवाह वे लोग हैं जो निकाह में उपस्थित होते हैं और यह बता सकते हैं कि निकाह हुआ था। एक वैध इस्लामी निकाह के लिए यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता हैं।

निषिद्ध संबंध

एक परिवार और विस्तारित परिवार के भीतर कुछ रिश्ते निषिद्ध होते हैं, अर्थात, रीति रिवाजों के हिसाब से जो रिश्ते निषिद्ध हैं उनसे निकाह नहीं किया जा सकता। इस्लामिक कानून में कुछ सख्त निषेध रिश्तें हैं जिनका पालन करना ज़रूरी है।

हिंदू विवाह का पंजीकरण

हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 8 में हिंदू कानून कहता है कि राज्य सरकार विवाहों के पंजीकरण से संबंधित नियम बना सकती है। एक हिंदू मैरिज रजिस्टर है, जिसमें शादियों को दर्ज किया जाता है, लेकिन सिर्फ इस आधार पर कि आपकी शादी इसमें दर्ज नहीं है इसका मतलब यह नहीं है कि आपका विवाह अमान्य है। यदि आप नीचे दी गई तालिका पर नज़र डालें, तो आप देख सकते हैं कि हिंदू विवाहों के लिए प्रत्येक राज्य के अपने नियम हैं।

इस्लामी कानून के तहत निषिद्ध संबंध कौन-कौन से हैं?

कानून के तहत कुछ रिश्ते प्रतिबंधित हैं। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति कुछ विशेष प्रकार के रिश्तेदारों से निकाह नहीं कर सकता है।

खून के रिश्ते

आप अपनी मां, दादी, नानी, बेटी, पोती, नातिन, बहन, भतीजी, भांजी, पर-भतीजी, पर-भांजी, मौसी, या बुआ से निकाह नहीं कर सकते। आप किसी ऐसे व्यक्ति से भी निकाह नहीं कर सकते जो ऐसे रिश्तेदारों के माध्यम से आपसे जुड़ा हो। जैसे, आप अपनी परपोती से निकाह नहीं कर सकते।

निकाह के माध्यम से रिश्तेदार

दूसरी, तीसरे या चौथे निकाह के मामले में आप अपनी पत्नी की माँ / दादी/ नानी, पत्नी की बेटी / पोती/ नातिन, बेटे की पत्नी से निकाह नहीं कर सकते।

धाय के माध्यम से रिश्तेदार

खून के रिश्तों और निकाह के माध्यम से निषिद्ध सभी संबंध धाय संबंधों पर भी लागू होते हैं। जैसे, एक आदमी अपनी धाय माँ की बेटी से निकाह नहीं कर सकता।

हिंदू विवाह और मानसिक रोग

कानून कहता है कि मानसिक रोग वाले व्यक्ति में आमतौर पर वैध कानूनी विवाह करने की क्षमता नहीं होती है। जो व्यक्ति शादी करने की योजना बना रहा है, उसे वैध सहमति देने के लिए सक्षम होना चाहिए। यदि आप निम्नलिखित कारणों से सहमति देने में अक्षम हैं:

  • दिमाग की अस्वस्थता या;
  • मानसिक विकार के कारण जो आपको ‘विवाह और बच्चे पैदा करने के लिए अयोग्य’ बनाता है या;
  • यदि आपको ‘पागलपन का दौरा लगातार पड़ता है’, तो आपका विवाह वैध नहीं होगा।
कानून का प्रावधान चाहे सभी प्रकार के मानसिक रोगों को सम्मिलित ना कर सकता हो, लेकिन ऐसे भी कोई दिशानिर्देश नहीं हैं कि किस प्रकार के रोग या रोग का स्तर आपको विवाह के लिए अनुपयुक्त बनाती हैं।

अस्थायी भरण-पोषण भुगतान

अपने संतानों या रिश्तदारों को, मासिक आधार पर अस्थायी भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश देने के लिए, आप न्यायालय में अर्जी दे सकते हैं। न्यायालय को इस बात का फैसला करना है कि आपके आवेदन के बारे में आपके संतानों या रिश्तोदारों को सूचित करने के 90 दिनों के भीतर, क्या आपको अस्थायी भरण-पोषण का भुगतान मिल सकता है। विशेष परिस्थितियों में वे इसके लिये कुछ और समय (यानी 30 दिन) दे सकते हैं। यह उच्चतम भरण-पोषण राशि नहीं है जो आप पाने की उम्मीद कर सकते हैं। न्यायालय फैसला कर सकती है कि आपको कोई भी भरण-पोषण भत्ता नहीं मिले, या फिर अपने अंतिम आदेश में आपके भरण-पोषण की राशि को बढ़ाने या घटाने का फैसला कर सकती है।

इस्लामी निकाह के दौरान कौन से गवाहों की जरूरत होती है?

इनकी उपस्थिति में निकाह होना चाहिए:

  • दो पुरुष गवाह, या
  • एक पुरुष और दो महिला गवाह।

ये गवाह मुस्लिम, वयस्क और दिमागी रूप से स्वस्थ होने चाहिए। इस्लामिक कानून के सुन्नी संप्रदाय में विशेष रूप से दो गवाहों को पेश करने की जरूरत होती है जबकि शिया संप्रदाय में निकाह के संबंध में किसी भी मामले में गवाह की उपस्थिति की जरूरत नहीं होती है।