आपकी नियुक्ति से पहले, यह जांचने के लिए कि आप नौकरी के लिए योग्य हैं या नहीं, नियोक्ता आपसे कुछ दस्तावेज़ जमा करने के लिए कह सकते हैं । उनमें से कुछ हैं:
पुराने नियोक्ता के दस्तावेज़
विमुक्ति पत्र (यदि लागू हो)
आपका नियोक्ता आपसे अपने पिछले नियोक्ता का एक हस्ताक्षरित दस्तावेज़ लाने के लिए बोल सकता है जिसमें यह कहा गया हो कि अब आप उनके साथ नहीं जुड़े हैं। किसी नए कर्मचारी द्वारा पिछले नियोक्ता के साथ समझौते को समाप्त नहीं किए होने की स्थिति में यह नियोक्ता को विवादों से बचाता है।
कार्य संदर्भ
आपका भावी नियोक्ता आपको साक्षात्कार के चरण से पहले या नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद कार्य संदर्भ मांग सकता है। आमतौर पर कार्य संदर्भ आपके पूर्व-नियोक्ता का एक संपर्क का जरिया होता है, जो काम के दौरान आपके काम की गुणवत्ता और आपके चरित्र की पुष्टि और व्याख्या कर सकता है। नियोक्ता इसे संदर्भ पत्र के रूप में मांग सकते है या वे सीधे संदर्भित से संपर्क कर सकते हैं।
पे स्लिप
नई नौकरी में आपका वेतन निर्धारित करने के लिए कुछ नियोक्ता पिछले नियोक्ता द्वारा दी गई पे स्लिप की एक प्रति मांगते हैं, इसकी दोहरी जांच करने के लिए कि आप अपने पिछले कार्यालय में कितना कमा रहे थे।
बायोडाटा और अन्य दस्तावेज़
बायोडाटा/सी.वी
आपका नियोक्ता आपके समस्त कार्य अनुभव और शिक्षा के सभी विवरणों के साथ आपका नवीनतम बायोडाटा या आत्म परिचय मांगेगा।
शैक्षिक प्रमाणन/दस्तावेज़
एच.आर उद्देश्यों और कर्मचारियों के दस्तावेजीकरण के लिए, कुछ नियोक्ता आपसे शिक्षा का प्रमाण जैसे स्कूल का प्रमाण पत्र, कॉलेज का स्नातक प्रमाण पत्र, उच्च अध्ययन का प्रमाण पत्र आदि मांग सकते हैं।
पहचान प्रमाण दस्तावेज़
सरकार-अधिकृत पहचान प्रमाण
अधिकांश नियोक्ता आपकी पहचान की आश्वस्ती और दस्तावेजीकरण के उद्देश्यों से आपसे पासपोर्ट-आकार की तस्वीरें और आधार, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस आदि जैसे पहचान प्रमाण की एक प्रति मांगते हैं।
पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट
कभी-कभी नियोक्ता पिछले या मौजूदा आपराधिक रिकॉर्ड की जांच के लिए कर्मचारियों को पुलिस सत्यापन कराने के लिए कह सकते हैं। दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में यह प्रावधान ऑनलाइन होता है। अन्यथा, यदि आपका नियोक्ता आपकी मदद नहीं करता है, तो आपको स्वयं पुलिस थाने जाना होगा और पुलिस अधिकारी से पुलिस क्लीयरेंस प्रमाण पत्र के लिए अनुरोध करना तथा इसे अपने नियोक्ता को प्रस्तुत करना पड़ सकता है।
वेतन खाते के लिए दस्तावेज़
बैंक का विवरण
आपका नियोक्ता या तो आपके बैंक का विवरण मांगेगा या आपका एक नया बैंक खाता शुरू करवाएगा, ताकि वे आपका वेतन उस खाते में स्थानांतरित कर सकें।
किसी फार्मासिस्ट के पेशेवर दुराचार के संबंध में किसी भी शिकायत को राज्य फार्मेसी परिषद या फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के समक्ष अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए लाया जा सकता है। प्रत्येक राज्य सरकार को एक राज्य फार्मेसी काउंसिल स्थापित करना आवश्यक है। राज्य आपसी समझौते के साथ संयुक्त राज्य परिषद बनाने के लिए भी स्वतंत्र हैं। भारत में सभी राज्य फार्मेसी काउंसिल की सूची यहां दी गई है।
शिकायत करने की प्रक्रिया
पंजीकृत फार्मासिस्ट के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया राज्य के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इससे संबंधित कानून राज्यों में निर्धारित किए जाते हैं और केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में आपको अपनी शिकायत राज्य फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार को लिखित रूप से प्रस्तुत करनी होती है और इसके साथ-साथ आपको शिकायत का आधार भी बताना होता ही।
आम तौर पर, शिकायत में शिकायतकर्ता का विवरण और पता होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि शिकायत में अनाम शिकायतों का प्रावधान नहीं है। यदि शिकायत में कोई भी जानकारी शिकायतकर्ता के व्यक्तिगत ज्ञान के भीतर नहीं है, तो ऐसी सूचना का स्रोत और
शिकायतकर्ता ऐसा क्यों मानता है और यह किन कारणों से सच है, यह सब स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।
फार्मासिस्ट को दंड देना
शिकायत प्राप्त होने के बाद, उपयुक्त फार्मेसी काउंसिल व्यवसायी की सुनवाई करेगी। यदि वे दोषी पाए जाते हैं, तो काउंसिल उन्हें दंडित करेगी।
सजा काउंसिल द्वारा निर्धारित की जाती है और वह पूरी तरह से या एक निश्चित अवधि के लिए संबंधित रजिस्टर से व्यवसायी के नाम को हटाने का आदेश भी दे सकती है। इसका मतलब है कि फार्मासिस्ट उस अवधि के लिए अभ्यास नहीं कर पाएगा।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि निजी क्षेत्र में एक कर्मचारी के रूप में आपके अधिकार सुरक्षित हैं, आपको अपने नियोजन के अनुबंध की शर्तों को सावधानीपूर्वक पढ़ना और समझना चाहिए। इसमें ना केवल बुनियादी शर्तों का जिक्र होगा जैसे कि वेतन और नौकरी का विवरण, बल्कि नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के अधिकारों तथा कर्तव्यों का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाएगा। इसीलिए आपको हमेशा एक लिखित अनुबंध प्राप्त करने का आग्रह करना चाहिए और इस पर हस्ताक्षर करने से पहले इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए क्योंकि इस पर हस्ताक्षर कर दिए जाने के बाद किसी भी शर्तों को बदलना मुश्किल होगा।
एक पंजीकृत फार्मासिस्ट के कार्य, जो दुराचार की श्रेणी में आएंगे और जिन कार्यों के खिलाफ शिकायत की जा सकती है, उनमें शामिल हैं:
कानून का उल्लंघन
- फार्मासिस्ट अधिनियम के तहत नियमों का उल्लंघन (एक फार्मासिस्ट के कर्तव्यों से जुड़े उल्लंघन शामिल हैं, जिन्हें यहां देखा जा सकता है)।
- यदि फार्मेसी में काम करने वाला पंजीकृत फार्मासिस्ट किसी अन्य फार्मेसी / फार्मेसी कॉलेज / संस्थान / उद्योग / किसी अन्य संगठन में शिक्षण संकाय या अन्य के रूप में काम करता हुआ पाया जाता है, तो यह दुराचार के तहत आता है।
दवाओं का प्रबंधन
- ऐसी दवाओं का वितरण करना, जिसके लिए पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी प्रिसक्रिप्शन की आवश्यकता होती है।
- पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी की स्वीकृति / सहमति के बिना, खुद प्रिसक्रिप्शन बनाना।
पंजीकरण प्रमाण पत्र और संबंधित जानकारी
- फार्मेसी के मालिक को फार्मेसी में भाग लिए बिना अपने फार्मासिस्ट पंजीकरण प्रमाण पत्र का उपयोग करने की अनुमति देना।
- एक से अधिक फार्मेसी में उनके फार्मासिस्ट पंजीकरण प्रमाण पत्र देना।
- पांच वर्षों तक मरीजों के पर्चे / वितरण रिकॉर्ड को न बनाए रखना, और 72 घंटे के भीतर रोगी या एक अधिकृत प्रतिनिधि अनुरोध करने पर इन रिकॉर्ड को प्रदान करने से इनकार कर देना।
- फार्मेसी में राज्य फार्मेसी काउंसिल द्वारा दिए गए पंजीकरण प्रमाण पत्र को प्रदर्शित नहीं करना।
अनुचित आचरण या अपराध
- रोगी के साथ व्यभिचार या अनुचित आचरण करना, या किसी पेशेवर स्थिति का दुरुपयोग करके रोगी के साथ अनुचित संबंध बनाना।
- नैतिक अपराध या आपराधिक कृत्यों से जुड़े अपराधों के लिए अदालत द्वारा दी जाने वाली सजा।
- रोगियों की प्राप्ति के लिए एजेंटों का उपयोग करना।
सूचना की गोपनीयता न बनाए रखना और उन्हें उजागर करना
- रोगों और उपचारों के बारे में वैसे लेखों को छापना और साक्षात्कार देना, जिसका प्रभाव विज्ञापन के तौर पर या पेशे की बढ़ोतरी के लिये किया जा सकता हो। हालांकि एक फार्मासिस्ट अपने नाम के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छ रहन सहन के मामलों में प्रेस में लिखने के लिये स्वतंत्र हैं। वे अपने नाम के तहत सार्वजनिक व्याख्यान दे सकते हैं, वार्ता कर सकते हैं, और इनकी घोषणा प्रेस में भी कर सकते हैं।
- अपने पेशे के अभ्यास के दौरान मालूम हुए मरीज के रहस्यों का खुलासा करना। हालांकि, प्रकटीकरण की अनुमति निम्नलिखित मामलों की जा सकती है:
- अदालत में, पीठासीन न्यायिक अधिकारी के आदेश के तहत;
- उन परिस्थितियों में, जहां एक विशिष्ट व्यक्ति और / या समुदाय के लिए किसी गंभीर और ज्ञात जोखिम की संभावना हो; तथा
- उल्लेखनीय रोगों के मामले में।
- केवल धार्मिक आधार पर एक पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी के पर्चे पर लिखी दवाओं को देने से इनकार करना।
- किसी भी मेडिकल या अन्य पत्रिका में मरीजों की अनुमति के बिना उनकी तस्वीरें या मामले की रिपोर्ट प्रकाशित करना, जिससे मरीज़ की पहचान की जा सकती हो। हालांकि, अगर पहचान का खुलासा नहीं होता है, तो सहमति की आवश्यकता नहीं है।
इसके अलावा, यदि कोई पंजीकृत फार्मासिस्ट फार्मेसी चला रहा है और अन्य फार्मासिस्टों की मदद के लिए काम कर रहा है, तो अंतिम जिम्मेदारी पंजीकृत फार्मासिस्ट की होती है।
यह सभी प्रकार के पेशेवर दुराचारों की एक संपूर्ण सूची नहीं है। हालांकि, ऊपर वर्णित परिस्थितियों को पेशेवर दुराचारों के रूप में माना जा सकता है, और जिम्मेदार फार्मेसी काउंसिल उस पर कार्रवाई कर सकती है। इसके अलावा, इसका मतलब यह होगा कि यहां वर्णित फार्मासिस्ट के किसी भी निर्धारित नैतिक मानकों के उल्लंघन के आधार पर उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
नैदानिक मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिस्ट) मानसिक, व्यवहारिक और भावनात्मक बीमारियों के निदान और मनोवैज्ञानिक उपचार में प्रशिक्षित एक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर है। हालांकि, मनोचिकित्सक के विपरीत, एक मनोवैज्ञानिक के पास मेडिकल डिग्री नहीं होती है, और इसलिए, वह दवाएं नहीं दे सकता है।
इसके अलावा, एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसके पास है:
- क्लिनिकल साइकोलॉजी में योग्यता, किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से, जिसे भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा अनुमोदित और मान्यता प्राप्त है, या
- साइकोलॉजी या क्लीनिकल साइकोलॉजी, या एप्लाइड साइकोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट डिग्री, और दो साल का पूर्णकालिक कोर्स पूरा करने के बाद, क्लीनिकल साइकोलॉजी या मेडिकल और सोशल साइकोलॉजी में मास्टर ऑफ फिलॉसफी। इसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी विश्वविद्यालय से पर्यवेक्षित (सुपरवाइज्ड) नैदानिक प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए, और जिसे भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा अनुमोदित और मान्यता प्राप्त हो।
नैदानिक मनोवैज्ञानिक लोग, पुनर्वास पेशेवरों की व्यापक श्रेणी में आते हैं। उदाहरण के लिए, इसमें अन्य पेशेवर जैसे कि ऑडियोलॉजिस्ट, भाषण (स्पीच) चिकित्सक आदि शामिल हैं। भारतीय पुनर्वास परिषद भारत में सभी पंजीकृत पुनर्वास पेशेवरों का एक रजिस्टर रखता है। आप यहां नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के बारे में विस्तार से जान सकते हैं।
गोपनीयता क्या है?
जिस संस्था या कंपनी के साथ आप काम कर रहे हैं, उसे अपने व्यापारिक रहस्यों और अन्य गोपनीय व्यापारिक सौदों की सुरक्षा करने का अधिकार है। इसलिए, आपके रोजगार अनुबंध में एक उपनियम आपको नियोक्ता की किसी भी गोपनीय जानकारी को संगठन के बाहर किसी को भी साझा करने या प्रकट करने से रोकता है। इस उपनियम को गोपनीयता के उपनियम के रूप में जाना जाता है। कभी-कभी इसे गैर-प्रकटीकरण उपनियम के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।
गोपनीयता आप पर कब लागू होती है?
गोपनीयता के उपनियम केवल कंपनी में रोजगार करने के दौरान ही लागू नहीं होता, बल्कि उसके बाद भी होता हैं.. यदि आप अपना रोजगार समाप्त होने के बाद गोपनीय जानकारी साझा करते हैं, तो यह आपके अनुबंध का उल्लंघन होगा और आपका नियोक्ता आपके खिलाफ मामला दर्ज करा सकता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि आप समान काम करने वाली कंपनी द्वारा नियोजित नहीं किए जा सकते हैं। कानूनी तौर पर, आप जहां भी चाहें, वहां काम करने का आपको अधिकार है, लेकिन आप अपने नए रोजगार में अपने पिछले नियोक्ता की किसी भी गोपनीय जानकारी का खुलासा नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, यदि आप पहले P&G के साथ काम कर रहे थे और आपको अब यूनिलीवर के नौकरी का प्रस्ताव मिला है, तो आपको यह नौकरी स्वीकार करने से प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा। लेकिन आप P&G के व्यापार रहस्यों का खुलासा यूनिलीवर में नहीं कर सकते।
अनुबंध में कोई गोपनीयता उपनियम नहीं
यदि आपके अनुबंध में कोई गोपनीयता उपनियम नहीं है, तो भी आपका अपने पूर्व-नियोक्ता के प्रति निष्ठा का कर्तव्य बनता है कि आप उनके व्यापार रहस्यों और उनके साथ अपने रोजगार के दौरान सीखी गई गोपनीय जानकारी का दूसरों के सामने खुलासा या अपने स्वयं के लाभ के लिए उपयोग न करें। कुछ मामलों में, आप पर आपराधिक विश्वासघात का मुकदमा भी चलाया जा सकता है।
नैदानिक मनोवैज्ञानिक के कुछ कर्तव्य नीचे दिए गए हैं:
अपनी सेवाओं का विज्ञापन करना
एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक को निम्नलिखित बातें नहीं करनी चाहिए:
- किसी भी विकलांग व्यक्ति को काम के लिये याचना, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करना। इसमें विज्ञापन, परिपत्र (सर्कुलर), हैंड-बिल आदि शामिल हैं। हालांकि, नैदानिक मनोवैज्ञानिक औपचारिक रूप से प्रेस के माध्यम से, अपना पेशा शुरू करने / पुनः शुरू करने, पेशे में परिवर्तन, पते में परिवर्तन, पेशे के समापन, और पेशे से अस्थायी अनुपस्थितियों के बारे में घोषणा कर सकते हैं।
- वे अपने योग्यताओं का प्रदर्शन साइन बोर्ड, लेटर हेड पैड, पर्ची, विजिटिंग कार्ड, प्रमाण पत्र, रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों पर सकते हैं, जिस पर मनोवैज्ञानिक के हस्ताक्षर होते हैं। पंजीकरण प्रमाण पत्र को स्पष्ट रूप से पेशे के स्थान पर दिखाया जाना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक को अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र के अलावे, किसी भी अन्य क्षेत्र में पेशा नहीं करना चाहिये।
शुल्क और भुगतान
नैदानिक मनोवैज्ञानिकों को अत्यधिक शुल्क नहीं लेना चाहिए। इसके अलावा, एक मनोवैज्ञानिक को ‘जब तक इलाज नहीं, तब तक भुगतान नहीं’ के सौदे में नहीं जाना चाहिए।
मरीजों का विवरण
नैदानिक मनोवैज्ञानिकों को मरीजों के विवरण, उन्हें दी गई प्रेसक्रिप्शन, शुल्क आदि का एक रजिस्टर में बनाए रखना चाहिए।
इसके अलावा, नैदानिक मनोवैज्ञानिकों का कर्तव्य है कि वे गोपनीयता बनाए रखें। इसमें उनके मरीज के मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल उपचार और शारीरिक स्वास्थ्य देखभाल आदि की गोपनीयता के बारे में जानकारी शामिल है।
मरीजों का इलाज और देखभाल
एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक को विकलांग लोगों के पुनर्वास या उपचार का कार्य नियमित और आवश्यक अंतराल पर, या उचित समय पर करना चाहिए। हालांकि, उन्हें निम्नलिखित चीजें नहीं करनी चाहिए:
- विकलांग व्यक्तियों के साथ किसी भी बीमारी की अवधि या उसकी तीव्रता के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताना।
- मरीज के साथ किसी भी अनुचित गतिविधि या कोई अनुचित संबंध में शामिल होना।
- विकलांग व्यक्ति के साथ कठोर और असभ्य भाषा का प्रयोग करना।
- विकलांग व्यक्ति की परिस्थिति का अनुचित लाभ उठाना।
- किसी भी विकलांग व्यक्ति की जानबूझकर उपेक्षा करना।
- किसी भी तरह का लाभ विकलांगता से पीड़ित लोगों से उठाने का प्रयास करना।
इन कर्तव्यों का उल्लंघन ‘दुराचार’ (मिसकंडक्ट), के रूप में माना जाएगा और भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा उस मनोवैज्ञानिक को अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी बना सकता है।
सहकर्मियों से अनधिकृत व्यवहार
यदि आपके अनुबंध में एक गैर-याचना उपनियम है, तो आप कंपनी के अन्य कर्मचारियों को किसी व्यवसाय, व्यापार या पेशे में, जो कंपनी के हित को नुकसान पहुंचा सकते हों, सूचीबद्ध नहीं कर सकते हैं। यह प्रतिबंध आप पर कंपनी में रोजगार करते समय और छोड़ कर जाने के बाद, दोनों समय लागू होता है।
उदाहरण के लिए, यदि हरप्रीत बेदी अपनी कंपनी शुरू करने के लिए ए.वाई.एस कंप्यूटर्स छोड़ते हैं, तो वह ए.वाई.एस के कर्मचारियों/सह-कर्मियों को अपने साथ नहीं ले जा सकते हैं। यदि वह ऐसा करते हैं, तो यह ए.वाई.एस के साथ अपने अनुबंध का उल्लंघन करेंगे और अनुबंध के उल्लंघन के लिए उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
ग्राहकों से अनधिकृत व्यवहार
रोजगार की प्रकृति के आधार पर, कुछ मामलों में, आप जिस कंपनी में नियोजित होते हैं उनका याचना का प्रतिबंध , ग्राहकों तक भी फैला रहता है। यदि आप किसी कंपनी में शामिल होने के लिए या अपनी खुद की कंपनी शुरु करने के लिए अपनी वर्तमान कंपनी को छोड़ रहे हैं, तो आप उस कार्यस्थल के ग्राहकों को नहीं ले सकते। यह आपके पूर्व-नियोक्ता के व्यवसाय को प्रभावित करेगा और आप पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि लोकेश शर्मा अपनी कंपनी शुरू करने के लिए XYZ लिमिटेड को छोड़ते हैं, तो वे जाते समय अपने साथ XYZ लिमिटेड के ग्राहकों को नहीं ले जा सकते। यदि वह ऐसा करते हैं, तो वह XYZ लिमिटेड के साथ अपने अनुबंध का उल्लंघन करेंगे और अनुबंध के उल्लंघन के लिए उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
गैर-प्रतिस्पर्धा उपनियम
रोजगार अनुबंध में गैर- प्रतिस्पर्धा उपनियम मौजूदा कर्मचारी को नियोक्ता के व्यापार या समान क्षेत्र में अपने नियोक्ता के साथ प्रतिस्पर्धा करने से रोकता है।
कुछ उदाहरण हैः
- यदि एक विशिष्ट तकनीक के साथ एयर प्यूरीफायर बनाने के व्यवसाय में हैं, तो उनका कर्मचारी Y उसी तकनीक के साथ प्रतिद्वंद्वी व्यवसाय नहीं शुरू कर सकता है।
- हरपीत सिंह बेदी ए.वाई.एस कंप्यूटर्स में सेल्समैन हैं, जिनके साथ उनका गैर- प्रतिस्पर्धा उपनियम है। यदि हरपीत ए.वाई.एस में रोजगार करते समय, रॉकेट सेल्स कॉर्पोरेशन, नाम से व्यवसाय शुरू करते हैं, जो ए.वाई.एस के समान है, तो वह अपने अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और उन पर मुकदमा किया जा सकता है, क्योंकि वह उपनियम उन्हें ऐसा करने से विशेष रूप से मना करता है।
ऊपर दिए गए कर्तव्यों के अलावा एक डॉक्टर के कुछ सामान्य कर्तव्य भी होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- पंजीकरण संख्या प्रदर्शित करना। पंजीकरण के बाद, राज्य चिकित्सा काउंसिल डॉक्टर को एक पंजीकरण संख्या देती है। इसे रोगियों को दिए गए सभी पर्चे, प्रमाण पत्र, धन प्राप्ति में प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
- दवाओं के जेनेरिक नामों का उपयोग। किसी दवा का जेनेरिक नाम निर्दिष्ट ब्रांड नाम के बजाए उसके रासायनिक नाम या ड्रग के रासायनिक संरचना को संदर्भित करता है।
रोगी की देखभाल में उच्चतम गुणवत्ता का आश्वासन। आगे के डॉक्टरों को निम्नलिखित चीज़ें करनी चाहिए:
- जिनके पास उचित शिक्षा नहीं है या जिनके पास उचित नैतिक चरित्र नहीं है उन लोगों को इस पेशे में दाखिल नहीं होने देना चाहिए।
- किसी ऐसे पेशेवर अभ्यास के लिए नियुक्त न करें, जो किसी भी चिकित्सा कानून के तहत पंजीकृत या सूचीबद्ध नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि कोई डॉक्टर एक नर्स को काम पर रख रहा है, तो यह कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो पंजीकृत नर्स है, जो अभ्यास करने के योग्य है।
- पेशे के अन्य सदस्यों के अनैतिक आचरण को उजागर करना।
- डॉक्टरों को सेवा देने से पहले अपनी फीस की घोषणा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर के व्यक्तिगत वित्तीय हितों को रोगी के चिकित्सा हितों के साथ संघर्ष नहीं करना चाहिए।
- देश के कानूनों का गलत इस्तेमाल नहीं करना और दूसरों को भी इसका लाभ उठाने में मदद नहीं करना।
मरीजों के प्रति कर्तव्य
- हालांकि एक डॉक्टर उनके पास आने वाले हर मरीज का इलाज करने के लिए बाध्य नहीं हैं, लेकिन उन्हें हमेशा किसी बीमार और घायल के कॉल का जवाब देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। एक डॉक्टर मरीज को किसी दूसरे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दे सकता है, लेकिन आपातकालीन स्थिति में उन्हें मरीजों का इलाज कर देना चाहिए। किसी भी डॉक्टर को मरीजों को इलाज से इनकार मनमानी तरीके से नहीं करनी चाहिए।
- एक डॉक्टर को धैर्यवान और सहज होना चाहिए, और हर एक मरीज की गोपनीयता का सम्मान करना चाहिए। मरीज की स्थिति की बताते समय, डॉक्टर को न तो मरीज की स्थिति की गंभीरता को कम करना चाहिए, और न ही उसे बढ़ा-चढ़ा कर बताना चाहिए।
- उसके द्वारा किसी भी मरीज को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। एक बार जब डॉक्टर किसी मरीज़ का इलाज शुरू कर देता है, तो उसे मरीज की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, और मरीज और मरीज के परिवार को पर्याप्त सूचना दिए बिना इलाज से पीछे नहीं हटना चाहिए। इसके अलावा, डॉक्टरों को जानबूझकर लापरवाही नहीं करनी चाहिए, जिसके चलते कोई मरीज आवश्यक चिकित्सीय देखभाल से वंचित हो जाय।
यदि आपका डॉक्टर इनमें से किसी भी या इन सभी कर्तव्यों में विफल रहा है, तो आप उनके खिलाफ उचित फोरम में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
आप नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के ‘दुराचार’ के संबंध में कई मंचों पर शिकायत दर्ज कर सकते हैं। एक मनोवैज्ञानिक को, किसी भी सामान्य कर्तव्य के उल्लंघन के आधार पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इनमें से कुछ निम्नलिखित मंच हैं:
भारतीय पुनर्वास परिषद (रिहेब्लिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया)
भारतीय पुनर्वास परिषद एक ऐसा मंच है, जो नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के काम की देखरेख करता है। आप ‘पेशेवर दुराचार’ (प्रोफेशनल मिसकंडक्ट) के आधार किसी पेशेवर के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं। परिषद दोषी पाए जाने पर मनोवैज्ञानिक के नाम को पुनर्वास पेशेवर (रिहेब्लिटेशन प्रोफेशनल्स) के रजिस्टर से स्थायी रूप से या निश्चित अवधि के लिए हटाने का आदेश दे सकता है।
विकलांगता के राज्य आयुक्त / विकलांगता के मुख्य आयुक्त
यदि आप एक विकलांग व्यक्ति हैं, जिनका एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक द्वारा इलाज किया जा रहा था, और जिन्होंने अपने कर्तव्यों / नैतिकता का उल्लंघन किया है, तो आपके पास राज्य के विकलांगता विभाग या भारत सरकार विकलांगता मुख्य आयुक्त, से
शिकायत करने का विकल्प है। आप यहां पर राज्य आयुक्तों की सूची देख सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड / राज्य मानसिक स्वास्थ्य बोर्ड
यदि आप मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों के लिए मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट द्वारा इलाज करा रहे है, तो आप तीन मुख्य अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं:
- केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण- यह कानून के तहत एक केंद्रीय प्राधिकरण है, जिसमें केंद्र सरकार के तहत सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करने, देश में सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के रजिस्टर को बनाए रखने, केंद्र सरकार के मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के तहत गुणवत्ता / सेवा मानदंडों के विकास, केंद्र सरकार के तहत सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की देखरेख, सेवाओं के प्रावधान में कमियों के बारे में शिकायतें प्राप्त करना आदि कार्य हैं।
- राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण- यह राज्य स्तर का प्राधिकरण है, जिसमें राज्य में मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के पंजीकरण, राज्य में मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के लिए गुणवत्ता / सेवा मानदंड विकसित करना, राज्य में सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की निगरानी करना, सेवाओं आदि के प्रावधान में कमियों के बारे में शिकायतें प्राप्त करना आदि कार्य हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड- यह कानूनी तौर पर जिला स्तर का प्राधिकरण है, जिसके पास अग्रिम निर्देश को पंजीकृत करने, समीक्षा करने, परिवर्तन करने, संशोधित करने या रद्द करने, नामांकित प्रतिनिधि नियुक्त करने, देखभाल में कमियों के बारे में शिकायतों को दूर करने आदि के लिए कार्य हैं।
अब तक, विशेष रूप से केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड कार्य कर रहे हैं। हालांकि, कुछ राज्यों, जैसे दिल्ली, केरल, आदि ने राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन किया गया है। आपको अपने संबंधित राज्य से इन प्राधिकरणों के कामकाज के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।