अधिवक्ता कौन होता है?

एक अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जो किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष किसी व्यक्ति के पक्ष को रखने के लिए बहस करता है। इसमें एक नागरिक (सिविल) मामला भी हो सकता है, जैसे किसी दो व्यक्तियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट संबंधी विवाद हो, या कोई आपराधिक मामला, जिसमें अपराध करने वालों को राज्य जेल की सजा आदि के द्वारा दंडित कर सकता है। भारत के अधिकांश कानूनी पेशेवर अदालतों और अन्य न्यायिक निकायों में अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

एक अधिवक्ता होने के लिए आवश्यक योग्यताएं

एक अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जो अधिवक्ता अधिनियम के तहत किसी भी नामांकन सूचि (रौल) में नामांकित है।

नामांकन सूचि (रौल), स्टेट बार काउंसिल द्वारा तैयार की गई एक अनुरक्षित सूची है, जिसमें विशिष्ट परिषद के तहत पंजीकृत सभी अधिवक्ताओं के नाम रहते हैं। संबंधित स्टेट बार काउंसिल का कर्तव्य है कि वह नामांकन सूचि (रौल) तैयार करे और उसे बनाए रखे, और अधिवक्ताओं को सूचि में सूचीबद्ध करे। क्वालिफाई करने के लिए, अधिवक्ता के लिये आवेदन करने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए:

  • वह भारत का नागरिक हो। हालांकि, विदेशी नागरिक भी यहां वकालत कर सकते हैं यदि वे उन देशों से
  • आते हैं, जहां भारतीय नागरिक कानूनों का अभ्यास होता है।
  • व्यक्ति की उम्र कम से कम 21 साल हो।
  • कानून में डिग्री

आवेदन करने वाले व्यक्ति के पास कानून की डिग्री होनी चाहिए:

  • 12 मार्च 1967 से पहले, भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से (इसमें स्वतंत्रता पूर्व भारत यानी 15 अगस्त 1947 से पहले के सभी विश्वविद्यालय शामिल हैं) होनी चाहिये।
  • 12 मार्च 1967 के बाद, भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त हो, और उसमें कानून में तीन वर्षीय पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता हो।
  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से शैक्षणिक वर्ष 1967-68 या उसके पहले के किसी भी शैक्षणिक वर्ष से कानून (कम से कम दो शैक्षणिक वर्ष) में पढ़ाई की हो।
  • भारत के बाहर किसी भी विश्वविद्यालय से, जिसकी डिग्री को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • एक बैरिस्टर के रूप में, जो 31 दिसंबर, 1976 से पहले, बार का सदस्य रहा है।
  • उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए, वह बम्बई या कलकत्ता के उच्च न्यायालयों द्वारा निर्दिष्ट परीक्षाओं को पास किया हो।
  • कोई अन्य विदेशी योग्यता जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त हो। मान्यता प्राप्त विदेशी विश्वविद्यालयों की सूची के लिए यहां देखें।

अन्य शर्तें

नामांकन के लिए, एक आवेदक को आवश्यक स्टाम्प शुल्क का भुगतान अपने स्टेट बार काउंसिल को करना होगा। आवेदक को बार काउंसिल ऑफ इंडिया को रु.150 का नामांकन शुल्क, और संबंधित स्टेट बार काउंसिल को भी रु. 600 का नामांकन शुल्क भुगतान करना होगा।

इसके अलावा, एडवोकेट के रूप में अपने नामांकन करने के इच्छुक व्यक्तियों को अपने संबंधित स्टेट बार काउंसिलों द्वारा रक्खी गई किसी भी अन्य शर्तों को भी पूरा करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, दिल्ली बार काउंसिल को एडवोकेटों को यह घोषणा करने की आवश्यकता है कि वे किसी अन्य व्यापार, व्यवसाय या पेशे से नहीं जुड़े हैं। यदि वे किसी चीज़ में शामिल हैं, तो उन्हें नामांकन के समय इसके बारे में पूरी जानकारी देनी होगी।

नौकरियों के लिए आवेदन करते समय रिसर्च करें

आपके रोजगार अनुबंध की शर्तों में वे तथ्य, अधिकार, कर्तव्य, और जिम्मेदारियां शामिल होंगी जो आपसे और आपके नियोक्ता से संबंधित हैं। ये शर्तें आपकी क्षमता, आपकी आशाओं, आपके नियोक्ता की आशाओं, तथा उद्योग के मानकों पर आधारित हैं। इन शर्तों का वर्णन कानून की भारी शब्दावली के साथ किया गया है, जैसे “गैर-प्रतिस्पर्धा”, “विवाद समाधान” इत्यादि।

आपके लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने नियोक्ता से जो उम्मीदें कर सकते हैं उसके बारे में कुछ रिसर्च करें, यदि आपके नियोक्ता की आशाएं अनुकूल हैं, और यदि आपका अनुबंध उद्योग के मानकों के अनुसार है।

उद्योग का मूल्यांकन करें

आप जब नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हों या नौकरी की पेशकश को स्वीकार कर रहे हों, तो तनख्वाह, वेतन मान, और कार्य व्यवहार के लिए उद्योग के मानकों को जानना महत्वपूर्ण है। बाज़ार के रुझानों को समझने और बेहतरीन कार्यप्रणाली का ज्ञान होने से आपके पास उन चीजों को प्राप्त करने का ज्यादा मौका होता है, जिसे अपने नियोक्ता से पाने के लिए आप पूरी तरह योग्य हैं।

संगठन का मूल्यांकन करें

साथ ही, भावी संगठन की कार्यप्रणालियों, काम के वातावरण, कर्मचारियों के साथ व्यवहार, वेतनमान इत्यादि की जांच कर लेना भी उपयुक्त होगा। इस प्रकार की रिसर्च करने से आपको अपने अनुबंध के बारे में बेहतर ढंग से तोल-मोल करने में मदद मिलेगी। आप इस प्रकार की विस्तृत जानकारी नेटवर्किंग ग्रुप, उस कार्यस्थल के पूर्व कर्मचारियों, वहां काम करने वाले आपके कॉलेज के सहपाठियों, सहपाठियों के साथियों आदि से पा सकते हैं।

अपना मूल्यांकन करें

अपने कौशल और क्षमता का आंकलन करें, क्योंकि इससे आपको अपने अनुबंध की शर्तों पर बेहतर ढंग से बातचीत करने में मदद मिलेगी। आपके काम करने का अनुभव, शैक्षिक योग्ताएं, प्रासंगिक डिग्रियां/पाठ्यक्रम/सर्टिफिकेट प्रोग्राम इत्यादि सभी चीज़ें उस पद को प्राप्त करने की उपयोगिता के साथ ही आपके वेतन में वृद्धि करेंगी जिसे आप मांग सकते हैं।

न्यायालय के प्रति एक एडवोकेट का कर्तव्य

एक एडवोकेट को न्यायालयों में पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के कुछ मानकों को बनाए रखना होता है।

न्यायालय में कर्तव्य

न्यायालय में एक एडवोकेट के रूप में उनके कुछ निम्नलिखित कर्तव्य हैं:

  • न्यायालय के समक्ष गरिमापूर्ण तरीके से व्यवहार करना। इसके अलावा, वे जब भी किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कोई गंभीर शिकायत करना चाहते हैं और इसका उनके पास उचित कारण है, तो एडवोकेट के पास कुछ अधिकार और कुछ कर्तव्य भी होते हैं, जिनके जरिए वे उचित अधिकारियों को अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एडवोकेटों से संबंधित शिकायतें, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिलों और नोटरी / सरकारी काउंसिलों के कानूनी मामलों के विभाग को भेजी जा सकती हैं।
  • न्यायालय के प्रति सम्मान दिखाना।
  • न्यायधीश या किसी अन्य न्यायधीश के सामने लंबित किसी भी मामले के बारे में किसी भी न्यायधीश से निजी तौर पर संवाद नहीं करनी चाहिये। एडवोकेटों को किसी भी मामले के बारे में, किसी भी अवैध या अनुचित साधनों का उपयोग करके न्यायालय के फैसले को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
  • न्यायालय में प्रस्तुत होने योग्य व्यवहार से पेश आना। न्यायालय में रहते हुए, एक एडवोकेट को उचित कपड़े पहनने होते हैं जिसे न्यायालय में पहनने के लिए निर्दिष्ट किया जाता है।
  • न्यायधीश के समक्ष प्रस्तुत नहीं होना / बहस नहीं करना चाहिये, अगर न्यायधीश का संबंध एडवोकेट से किसी भी निम्नलिखित रूपों में से है:
    • पिता / मां
    • दादा
    • बेटा / बेटी
    • पोता
    • चाचा / चाची
    • भाई / बहन
    • भतीजा / भतीजी भगना/भगनी
    • चचेरा/ममेरा/मौसेरा/फूफेरा भाई /बहन
    • पति / पत्नी
    • ससुर / सास
    • दामाद / बहू
    • जीजा/साला / ननद / भाभी
  • न्यायालयों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर एडवोकेट का
  • गाउन / बैंड नहीं पहना चाहिये। एडवोकेट इसे केवल औपचारिक अवसरों पर, और बार काउंसिल ऑफ इंडिया या न्यायालय द्वारा निर्धारित स्थानों पर ही पहन सकते हैं।
  • अपने मुवक्किल के लिए ज़मानत के रूप में खड़ा नहीं हो सकते हैं।

नए मामले लेते समय एक अधिवक्ता के कर्तव्य

एक अधिवक्ता के कुछ कर्तव्यों में शामिल हैं:

  • अगर अधिवक्ता किसी प्रतिष्ठान के कार्यकारी समिति का सदस्य है जो उस प्रतिष्ठान के सामान्य मामलों का प्रबंधन करता है तो वह अधिवक्ता को ऐसे प्रतिष्ठान की तरफ से या उसके खिलाफ उपस्थित नहीं होना चाहिये। उदाहरण के लिए, यदि कोई अधिवक्ता किसी कंपनी का निदेशक है, तो वे वह उस कंपनी के विवाद में उपस्थित नहीं हो सकता है।
  • ऐसे मामले को नहीं लेना चाहिये, जिसमें अधिवक्ता का कोई वित्तीय हित हो।

अन्य अधिवक्ताओं या अन्य मुवक्किलों के प्रति कर्तव्य

एक अधिवक्ता का अपने विरोधी अधिवक्ता और विरोधी मुवक्किल के प्रति भी कर्तव्य होता है। एक अधिवक्ता को विरोधी पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता के साथ सीधे बातचीत नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, अधिवक्ताओं को अपने विपक्ष को किए गए वैध वादों को पूरा करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, जैसे कि न्यायालय की तारीख पर उपस्थित होना, समय पर याचिकाओं का मसौदा तैयार करना, आदि।

कुछ अन्य कर्तव्य इस प्रकार के हैं:

विरोधी अधिवक्ताओं और विरोधी पक्षों के प्रति कोई अवैध या अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए। अधिवक्ताओं को अपने मुवक्किलों को भी ऐसा करने से रोकना होगा।

  • उसे अपने मुवक्किल को भी अनुचित मार्ग का अनुसरण करने से रोकना चाहिये। अधिवक्ताओं को अपने मुवक्किल को न्यायालय या विरोधी पक्ष के संबंध में कुछ भी करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, और उन्हें स्वयं भी ऐसा नहीं करना चाहिए। अधिवक्ता को अपने किसी भी ऐसे मुवक्किल का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहिए, जिसका आचरण अनुचित हो। अधिवक्ताओं को पत्र-व्यवहार और न्यायालय के बहस में गरिमापूर्ण भाषा का उपयोग करना चाहिए। उन्हें न्यायालय में बहस के दौरान किसी अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
  • जब कोई अधिवक्ता किसी मुवक्किल के मामले को ले लेता है तो काई अन्य अधिवक्ता उस मामले की पैरवी नहीं कर सकता है। हालांकि, बाद वाला अधिवक्ता पिछले वाले अधिवक्ता की स्वीकृति से ले सकता है।
  • यदि ऐसी स्वीकृति प्राप्त नहीं हो पाती है, तो अधिवक्ता को मुवक्किल के मामले की पैरवी करने के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होगी।

एक अधिवक्ता का अपने मुवक्किलों के प्रति कर्तव्य

ऐसे कई कर्तव्य हैं जो एक अधिवक्ता को अपने मुवक्किल के प्रति निभाने होते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार के हैं:

मामलों को स्वीकार करना और मामले को छोड़ देना

एक अधिवक्ता

  • जब तक कि असाधारण परिस्थितियां उपस्थित न हों, वह किसी भी मामले को स्वीकार कर सकता है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगर कोई मुवक्किल आपकी फीस देने के लिए तैयार है, तो अधिवक्ता उस मुवक्किल का मामला लेने से इंकार नहीं कर सकता है, बशर्ते कि वह बहुत व्यस्त न हो। एक अधिवक्ता की फीस उसके पेशेवर प्रतिष्ठा और मामले की प्रकृति पर आधारित होगी।
  • किसी भी मामले को लेने के बाद उससे पीछे नहीं हटना चाहिये। हालांकि, अधिवक्ता पर्याप्त कारण बताकर और मुवक्किल को उचित नोटिस दे कर ऐसा कर सकता है। यदि अधिवक्ता किसी मामले से वापिस हटता है तो उसे कोई भी अनर्जित फीस वापिस करनी होगी।
  • उस मामले को न वो स्वीकार कर सकता है, न उसकी तरफ से उपस्थित हो सकता है, जिसमें उस अधिवक्ता को एक गवाह के तौर पर उपस्थित होना है।

मुवक्किल के प्रति निष्ठा

एक अधिवक्ता को

  • अपने मुवक्किल को, मामले के विपक्ष से जुड़े अपने संबंध, या किसी अन्य हित के बारे में पूर्ण और स्पष्ट रूप से प्रकट करना चाहिये।
  • सभी उचित और सम्मानजनक उपायों से अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा करना है। अधिवक्ताओं को इस सिद्धांत के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए और मुवक्किल के अपराध के बारे मे अपनी राय के चलते उसका मामला लेने से नहीं मुकरना चाहिये। मुवक्किल के अपराध के बारे मे अपनी राय के एक तरफ रखकर उन्हें अपने मुवक्किल को बचाना चाहिए।
  • किसी निर्दोष को दंड दिलवाने के लिये काम नहीं करना चाहिये। उदाहरण के लिए, अधिवक्ताओं को ऐसी किसी सामग्री को नहीं छुपानी चाहिए जो किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति की बेगुनाही को स्थापित करता हो।
  • केवल मुवक्किल या मुवक्किल के एजेंट के निर्देशानुसार काम करना चाहिये।
  • यदि एक अधिवक्ता ने मुकदमे के किसी भी चरण में एक मुवक्किल को सलाह दी हो, उसके लिये कार्य किया हो, उपस्थित हुआ हो, या बहस किया हो तो वह विरोधी पक्ष की तरफ से न कभी प्रस्तुत हो सकता है, न कभी बहस कर सकता है।

मुवक्किल के हितों की रक्षा करना।

अधिवक्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे:

  • कोई फीस मामले के परिणाम के आधार पर निर्धारित न करें। एक अधिवक्ता को उन लाभों को साझा करने के लिए सहमत नहीं होना चाहिए जो लाभ उसके मुवक्किल को उस मामले से प्राप्त होंगे।
  • मुवक्किल के विश्वास का दुरुपयोग न करें, न उससे लाभ उठायें।
  • मुवक्किल द्वारा दिए गए पैसों का स्पष्ट हिसाब रखें।
  • यदि मुवक्किल फीस देने में सक्षम है तो उससे फीस उतने पैसे से कम न लें जिस पर कर लग सकता है।

इनमें से किसी भी कर्तव्य को करने में विफल होने पर एक अधिवक्ता पर व्यावसायिक दुराचार (प्रोफेशनल मिस्कंडक्ट) का अभियोग लगेगा, और एक मुवक्किल अधिवक्ता के विरोध में अपनी शिकायत उपयुक्त फोरम में दर्ज कर सकता है।

एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करना

एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत, उस अधिवक्ता द्वारा पेशा संबंधित, या उसके किसी दुराचार यानी अनुचित व्यवहार से संबंधित हो सकता है। ऐसा व्यवहार या कृत्य जो ‘दुराचार’ को दर्शाता हो उन्हें किसी भी बड़ी सूची से भी परिभाषित नहीं किया जा सकता। हमें यह ध्यान देने की ज़रूरत है अधिवक्ता की काम एक कुलीन पेशा है, और समाज में उनके लिए उच्च मानक तय किए गए हैं, जिनकी अपेक्षा एक अधिवक्ता से की जाती है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनका कानून में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन अतीत में कई अनुशासनात्मक कार्य देखने को मिले हैं, जैसे कि एक अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल को चाकू से धमकाने की कोशिश की, इत्यादि।

शिकायत करने के लिए फोरम

एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए स्टेट बार काउंसिल एक उपयुक्त फोरम है। स्टेट बार काउंसिल शिकायत प्राप्त होने पर, या अपने स्वयं के प्रस्ताव पर, उस अधिवक्ता के खिलाफ दुराचार का मामला अपनी अनुशासन समितियों में से किसी एक के पास दर्ज कर सकती है।

इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासनात्मक समिति के पास यह अधिकार है कि वह किसी स्टेट बार काउंसिल में किसी लंबित कार्यवाही को वापस लेकर, मामले पर स्वयम् ध्यान दे।

शिकायत प्राप्त होने के एक वर्ष बाद से अधिक होने पर भी यदि मामला स्टेट बार काउंसिल के समक्ष लंबित रहता है, तो यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया को स्थानांतरित कर दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति स्टेट बार काउंसिल के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो उन्हें, निर्णय होने के 60 दिनों के भीतर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अपील करने का अधिकार है। यदि व्यक्ति बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले से भी असंतुष्ट है तो वह, उनके निर्णय के 60 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकता है।

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

स्टेट बार काउंसिल एक अधिवक्ता के खिलाफ उन्हीं शिकायतों को स्वीकार करते हैं, जो याचिका के रूप में होती हैं, और जो विधिवत हस्ताक्षरित और सत्यापित (वेरिफाइड) होती हैं। यदि आप इसके लिये फॉर्मेट जानना चाहते हैं, तो आप अपने स्टेट बार काउंसिल से संपर्क कर सकते हैं, जिसके पास शिकायत दर्ज करने का एक निर्धारित मानक फॉर्मेट होता है जो फीस भरने पर मिलता है। इसके अतिरिक्त, यह फॉर्मेट अंग्रेजी, हिंदी या संबंधित राज्य की भाषा में भी होता हैं।

किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज करने के बाद, स्टेट बार काउंसिल की अनुशासन समिति इस मामले की जांच करती है।

एक अधिवक्ता को दंडित करना

जब किसी अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज हो जाती है, तो स्टेट बार काउंसिल की अनुशासन समिति उस अधिवक्ता को खुद को बचाव करने का अवसर देती है। इसके अलावा, जांच के दौरान राज्य के एडवोकेट जनरल भी मौजूद रहते हैं। जांच के बाद, समिति निम्नलिखित कार्रवाई कर सकती है:

  1. वह अधिवक्ता को फटकार लगा सकती है;
  2. निर्धारित समय के लिए अधिवक्ता को निलंबित कर सकती है;
  3. राज्य की सूचि (रौल) से अधिवक्ता का नाम हटा सकती है;
  4. दर्ज की गई शिकायत को खारिज कर सकती है।

नौकरी का प्रस्ताव

जब कोई नियोक्ता आपको काम पर रखना चाहता है और आपको नौकरी का प्रस्ताव देता है, तो उन्हें:

  • प्रस्ताव के बारे में आपको ज़रूर बताना चाहिए
  • नौकरी की भूमिका और नौकरी की शर्तों को ज़रूर स्पष्ट करना चाहिए
  • आपके काम के बदले में कुछ पारिश्रमिक/वेतन/लाभ का प्रस्ताव ज़रूर देना चाहिए

प्रस्ताव का संवाद

नियोक्ता को स्पष्ट शब्दों में नौकरी के प्रस्ताव के माध्यम से आपको नौकरी पर रखने की इच्छा का या तो लिखित रूप में या मौखिक रूप से संवाद देना होगा।

फिर भी, प्रस्ताव का लिखित होना बेहतर है, क्योंकि यदि आपका नियोक्ता भविष्य में इससे इनकार करता है तो यह साबित करना आसान है कि वास्तव में प्रस्ताव दिया गया था।

नौकरी में भूमिका और नौकरी की शर्तें

  • आपको दिया गया प्रस्ताव एक विशिष्ट पद या भूमिका के लिए होना चाहिए। यदि प्रस्ताव स्पष्ट नहीं है, तो वे जिस नौकरी के लिए आपको रखना चाहते हैं, उसकी भूमिका किस तरह की है उसे स्पष्ट करें। एक बार जब आप इसे स्वीकार कर लेंगे और लिखित अनुबंध पर हस्ताक्षर कर देंगे, तो नौकरी से बाहर निकलना मुश्किल होगा।
  • सुनिश्चित कर लें कि आपकी नौकरी में भूमिका, प्रति वर्ष प्रति वर्ष कंपनी द्वारा वहन किए गए खर्चे (सी.टी.सी), लाभ, मासिक वेतन आदि दिए गए हैं। प्रस्ताव स्वीकार करने से पहले नौकरी के विवरण को लेकर कोई भी संदेह हो तो अपनी सभी शंकाओं को दूर करें।

वेतन और अन्य लाभ

आपका वेतन आपके रोजगार के प्रकार या प्रकृति से निर्धारित होगा। वेतन की गणना उस नौकरी-विशेष के बाज़ार दर, पिछले कार्य के अनुभव और आपके तोल-मोल करने के कौशल के आधार पर की जाती है। उस संस्था के लिए आप अपने कौशल के रूप में, जो लाभ प्रदान करने वाले हैं, उसका स्पष्ट रूप से संवाद करके और उद्योग की दरों के अनुसार वेतन के बारे में अपने स्वयं के बाज़ार संबंधी रिसर्च का उपयोग करके अपनी वेतन पर मोल-भाव कर सकते हैं। यदि आप एक वेतनभोगी कर्मचारी हैं, तो आपका कुल वेतन विभिन्न मदों जैसे, मूल वेतन, महंगाई भत्ता (डी.ए), भविष्य निधि कटौती, मकान किराया भत्ता (एच.आर.ए) आदि में विभक्त होगा। हालाँकि, यदि आप कर्मचारी नहीं हैं, तो आपको आपकी पूरी वेतन राशि का भुगतान किया जाएगा, जिसे ‘प्रतिधारण शुल्क’ कहा जाएगा।

नौकरी का प्रस्ताव आपको संप्रेषित कर दिए जाने के बाद, अपनी परिस्थितियों के आधार पर, आप हमेशा अतिरिक्त लाभ, उच्च वेतन या बेहतर पद के लिए बातचीत कर सकते हैं। ऐसी बातचीत पर आपका नियोक्ता विचार कर भी सकता है या नहीं भी कर सकता है, इस स्थिति में प्रस्ताव स्वीकार या अस्वीकार करना आप पर निर्भर है।

 

प्रस्ताव का समय पर जवाब

आपके नौकरी के प्रस्ताव में एक समय अवधि निर्दिष्ट हो सकती है जिसके भीतर आपको जवाब देना होगा और यदि आप दिए गए समय में जवाब नहीं देते हैं, तो नौकरी का प्रस्ताव हाथ से निकल जाएगा।

यदि कोई समय अवधि निर्दिष्ट नहीं है, तो आपको उचित समय के भीतर नियोक्ता को, नौकरी के प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करते हुए, जवाब देना चाहिए।

एक फार्मासिस्ट / औषधज्ञ कौन होता है?

फार्मासिस्ट एक ऐसा व्यक्ति है, जो दवाओं को तैयार करने, उन्हें मॉनिटर करने और उसे बेचने के लिए प्रशिक्षित होता है। कानून के तहत, एक पंजीकृत फार्मासिस्ट वह व्यक्ति है, जिसका नाम राज्य के रजिस्टर में दर्ज किया रहता है, जहां वे रहते हैं, फार्मेसी का पेशा करते हैं, या फार्मेसी का व्यवसाय करते हैं।

रजिस्टर में पंजीकृत व्यक्ति का पूरा नाम और पता, रजिस्टर में उनके पहले प्रवेश की तारीख, पंजीकरण होने के लिए उनकी योग्यताएं, पेशे का पता, उनके नियोक्ता का नाम, आदि शामिल रहता है।

फार्मासिस्ट के लिए आवश्यक योग्यताएं

फार्मासिस्ट की योग्यताएं, विभिन्न राज्यों अनुसार अलग-अलग होती है। प्रत्येक राज्य की राज्य फार्मेसी काउंसिल ने फार्मासिस्ट के रूप में एक व्यक्ति को पंजीकृत होने के लिए कुछ योग्यताएं निर्धारित की हैं। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया इस तरह की योग्यताएं को मंजूरी देता है।

शिक्षा / डिग्री

पहली बार फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकरण करने के लिए व्यक्ति उम्र कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए। आवश्यक शुल्क का भुगतान करने के बाद, व्यक्ति का नाम उस राज्य के रजिस्टर में जोड़ा जाएगा जहां वे रहते हैं, या फार्मेसी का व्यवसाय / पेशा करते हैं, और अगर उनके पास निम्नलिखित योग्यताएं हैं:

  • फार्मेसी या फार्मास्युटिकल केमिस्ट्री में डिग्री या डिप्लोमा, या केमिस्ट और ड्रगिस्ट डिप्लोमा ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी या राज्य सरकार, या भारत के बाहर किसी प्राधिकरण द्वारा निर्धारित योग्यताएं; या
  • फार्मेसी या फार्मास्युटिकल केमिस्ट्री में डिग्री के अलावा किसी भारतीय विश्वविद्यालय की डिग्री। इसके अलावा, उस व्यक्ति को अस्पताल, औषधालय, या किसी अन्य स्थान पर दवाओं के बारे में कम से कम 3 साल तक का अनुभव हो, जहां चिकित्सकों के प्रेसक्रिप्शन के आधार पर दवाओं का नियमित रूप से वितरण किया जाता हो; या
  • कंपाउंडरों या डिस्पेंसरों के लिए राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हों; या
  • अस्पताल, औषधालय या किसी अन्य स्थान पर दवाओं के बारे में कम से कम 5 साल तक का अनुभव हो, जहां चिकित्सकों के प्रेसक्रिप्शन के आधार पर दवाओं का नियमित रूप से वितरण किया जाता हो। इस अवधि की गणना राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित पंजीकरण के आवेदन की तारीख से शुरू होती है।

अन्य योग्यताएं

उपरोक्त योग्यता के अलावा, एक व्यक्ति फार्मासिस्ट के रूप में, बाद के पंजीकरण के लिए पात्र होगा, यदि वह निम्नलिखित योग्यताएं पूरा कर पाता है:

  • यदि वह दूसरे राज्य का पंजीकृत फार्मासिस्ट है।
  • भारतीय नागरिकों को फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकरण के योग्य बनाने के संबंध में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया भारत के बाहर किसी भी प्राधिकरण द्वारा दी गई योग्यता को मंजूरी दे सकती है। योग्यता के न्यूनतम स्तर और ज्ञान की गारंटी मिलने के बाद ही परिषद आवेदन को मंजूरी देती है। हालांकि, गैर-नागरिक भी पंजीकरण के लिए क्वालिफाई कर सकते हैं यदि वे उन देशों से आते हैं, जहां भारतीय मूल के व्यक्ति (जिनके पास आवश्यक योग्यताएं हैं) फार्मेसी का अभ्यास करते हैं। यहां, रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करने के लिए, व्यक्ति को मैट्रिक परीक्षा या किसी अन्य समकक्ष परीक्षा में उत्तीर्ण रहना चाहिए।

पंजीकृत फार्मासिस्टों का मरीजों के प्रति कर्तव्य

ग्राहकों की मदद करते समय, फार्मासिस्टों के कुछ कर्तव्य हैं:

  • एक फार्मासिस्ट हर उस व्यक्ति को अटेंड करने के लिए बाध्य नहीं है, जो उनकी सेवाओं की मांग करते हैं। हालांकि, एक फार्मासिस्ट को हमेशा बीमारों और घायलों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।
  • फार्मासिस्टों को हमेशा अपने मरीजों की गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एक फार्मासिस्ट को मेडिकल अटेंडेंस के दौरान देखे गए रोगियों के किसी भी मामलों या दोषों को प्रकट नहीं करना चाहिए। हालांकि, अगर राज्य के कानून के अनुसार ऐसी जानकारियां देना फार्मासिस्ट के लिए आवश्यक है, तो वे ऐसा कर सकते हैं। फार्मासिस्ट इस तरह की जानकारियां भी दे सकते हैं अगर उन्हें लगता है कि यह किसी स्वस्थ तीसरे पक्ष को मलेरिया, कोविड-19 आदि जैसे संक्रामक रोग से बचाएगा।
  • रोग का निदान करते समय, फार्मासिस्ट को रोगी की स्थिति की गंभीरता को न तो कम, ना ही ज्यादा करके बतानी चाहिए। इसके अलावा, फार्मासिस्टों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रोगी, रोगी के परिवार और करीबी दोस्तों को रोगी की स्थिति का सही ज्ञान हो, ताकि यह रोगी और रोगी के परिवार के सर्वोत्तम हितों में सहायक हो।
  • आपातकालीन स्थिति में फार्मासिस्ट को उनकी सहायता के लिए किसी भी अनुरोध का जवाब तुरत देना चाहिए। उन्हें जानबूझकर वैसी लापरवाही नहीं करनी चाहिए, जो रोगी को आवश्यक चिकित्सा देखभाल से वंचित कर दे।

फार्मासिस्टों द्वारा रोगी के लिए परामर्श

डॉक्टर द्वारा दी गई दवा का पर्चा प्राप्त करने के बाद, और रोगी के रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद, एक पंजीकृत फार्मासिस्ट को उन मामलों की व्यक्तिगत रूप से चर्चा शुरू करनी चाहिए, जो दवा चिकित्सा या रोगी की देखभाल के लिए अनुकूलन रहेंगे। फार्मासिस्ट चर्चा को व्यक्तिगत रूप से, या टेलीफोन आदि द्वारा संचालित कर सकता है।

रोगी को परामर्श देते वक्त चर्चा में उपयुक्त चीजें शामिल होनी चाहिए। इसमें निम्नलिखित बातें शामिल हो सकती हैं:

  • दवाओं का नाम और विवरण
  • दवा, दवा की मात्रा, दवा को कैसे लेना है और दवा लेने की अवधि
  • दवा के लिए विशेष निर्देश और सावधानियां
  • आम दुष्प्रभाव, प्रतिकूल प्रभाव आदि, जिनका सामना करना पड़ सकता है, जिसमें उनका परहेज़ भी शामिल है, और अगर ऐसा होता है तो इसके प्रति ज़रूरी कार्रवाई करना।
  • दवा लेते वक्त खुद को मॉनिटर करने की तकनीक
  • दवाओं का उचित भंडारण

रोगी या उनके एजेंट हमेशा इस तरह के परामर्श से इनकार कर सकते हैं।

परामर्श के दौरान फार्मेसियों की भूमिका

फार्मासिस्ट को रोगी को दी जाने वाली दवाओं का रिकॉर्ड रखना होता है। इसके अलावा, रोगी परामर्श प्रदान करने वाले फार्मेसियों को ध्यान में रखना होगा कि:

  • केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट ही काउंसलिंग में शामिल हो सकते हैं।
  • गोपनीय रूप से चर्चा के लिए सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए, और रोगी की गोपनीयता को बनाए रखा जाना चाहिए।
  • इसके लिए उचित डॉक्यूमेंटेशन आवश्यक है।
  • परामर्श, रोगी के भले के लिए होना चाहिए। प्रत्येक परामर्श में, रोगी का लाभ सबसे ज्यादा महत्व रखता है। मामले में लगे सभी पंजीकृत फार्मासिस्ट को रोगी और उसके परिचारकों के साथ फ्रैंक होना चाहिए।
  • काउंसलिंग के दौरान समय की पाबंदी बनाई रखनी चाहिए।

हालांकि, यह याद रखें कि कानून फार्मासिस्टों को रोगों का निदान करने और रोगियों को दवाएं लिखने के लिए फार्मा क्लीनिक खोलने की अधिकार नहीं देता है।

यदि इन कर्तव्यों को पूरा नहीं किया जाता है और आप ग्राहक / रोगी के रूप में समस्याओं का सामना करते हैं, तो आप फार्मासिस्ट के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

अपने नौकरी के प्रस्ताव को लिखित में स्वीकार करना

बातचीत के बाद ही स्वीकृति

सुनिश्चित करें कि आपने उस प्रस्ताव में किसी भी बदलाव के लिए अपनी सभी बातचीत पूरी कर ली है और उसके बाद ही नौकरी स्वीकार करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार जब आप प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हैं, तो आपका नियोक्ता यह सोचेगा कि आप बिना किसी समस्या के प्रस्ताव की सभी शर्तों को स्वीकार कर रहे हैं।

स्वीकृति पत्र लिखना

अपने नियोक्ता द्वारा दिए गए नौकरी के प्रस्ताव को या तो ईमेल द्वारा स्वीकार करें या अपने नियोक्ता द्वारा प्रदान किए गए नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर करें।

इस तरह से नियोक्ता का भविष्य में आपकी नियुक्ति पर विवाद करना और उससे पीछे हटना कठिन होगा।

स्वीकृति की समय सीमा

कुछ मामलों में, आपका नियोक्ता आपको निश्चित तिथि से पहले ईमेल द्वारा नौकरी के प्रस्ताव की स्वीकृति देने के लिए कह सकता है, उदाहरण के लिए, महीने की 10वीं तारीख या सप्ताह के अंत तक। यह जरूरी है कि आप इस समय अवधि के भीतर नौकरी के प्रस्ताव का जवाब दें अन्यथा यह प्रस्ताव हाथ से निकल जाएगा और नियोक्ता किसी और को उस पद का प्रस्ताव दे सकता है। आप इस पर शिकायत भी नहीं कर सकते हैं।

यदि आपका नियोक्ता नौकरी के प्रस्ताव का जवाब देने का कोई समय या तरीका नहीं बताता है, तो:

  • संप्रेषण के उस तरीके का उपयोग करें जिससे देरी न हो।
  • उचित समय के भीतर उत्तर दें अन्यथा नौकरी का प्रस्ताव चला भी जा सकता है।

यदि आप नौकरी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का निर्णय लेते हैं, तो कृपया सुनिश्चित करें कि आप इसे अपने नियोक्ता को लिखित रूप में या बोल कर ठीक से बता रहें हैं।

फार्मासिस्टों द्वारा नैतिक आचरण

फार्मासिस्टों के लिए कुछ नैतिक आचरणों में निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं:

फार्मासिस्टों द्वारा ड्रग्स / दवाओं का प्रबंधन

फार्मासिस्टों को स्केल और सही तरीकों की मदद से सभी सामग्रियों को वजन और सही अनुपात में मापकर उचित ढंग से निकालने के लिए सभी संभव देखभाल करनी चाहिए (दृश्य अनुमानों से बचा जाना चाहिए)। इसके अलावा, एक फार्मासिस्ट को हमेशा मानक गुणवत्ता की दवाओं और औषधि मिश्रण का उपयोग करना चाहिए, और कभी भी मिश्रणों में मिलावट नहीं करनी चाहिए। एक फार्मासिस्ट को जहरीली दवाओं और औषधीय मिश्रण या नशे की लत और ऐसे ही अन्य में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के प्रबंधन में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।

ड्रग्स / दवाइयों की हॉकिंग

दवाओं की हॉकिंग करने पर मनाही है। इसलिए, फार्मासिस्ट उत्पादों को घर-घर जाकर नहीं बेच सकते हैं। फार्मासिस्ट खुद-बखुद दवाइयों को न बेच सकें इसलिए किसी विशेषज्ञ पर्यवेक्षण के बिना, फार्मासिस्ट, दवाओं का वितरण नहीं कर सकते हैं।

उचित ट्रेड अभ्यास

कड़ी प्रतियोगिता के तहत, एक अन्य दवा प्रतिष्ठान के व्यवसाय पर कब्जा करने के उद्देश्य से फार्मासिस्टों के बीच ऐसे कृत्यों की मनाही है, जिससे दूसरे फार्मासिस्ट को नुकसान पहुंचता हो। कड़ी प्रतियोगिता में शामिल हैं:

  • ग्राहकों को किसी भी प्रकार के पुरस्कार, उपहार या किसी भी प्रकार की खरीद की पेशकश करना
  • साथी फार्मासिस्ट द्वारा वसूले गए उचित मूल्यों की तुलना में, मेडिकल वस्तुओं के लिए कम कीमत वसूलना।

यदि किसी विशेष डिस्पेंसरी द्वारा सेवा दिए जाने के बावजूद अगर प्रिसक्रिप्शन या आदेश किसी अन्य डिस्पेंसरी में गलती से चला जाता है, तो बाद वाले को इसे स्वीकार करने से इनकार कर देना चाहिए और ग्राहक को सही जगह पर भेजना चाहिए। लेबल, ट्रेडमार्क और अन्य संकेतों और अन्य दवा प्रतिष्ठानों के प्रतीकों की नकल करना भी गैर-कानूनी है।

विज्ञापन और प्रदर्शन

जनता को दवाइयां बेचने के संबंध में, एक फार्मासिस्ट को ऐसे डिस्प्ले का उपयोग नहीं करना चाहिए जो

अनिच्छुक हैं, या जिनमें निम्नलिखित चीजें शामिल हैं:

  • कोई भी शब्द, डिजाइन या चित्रण जो फार्मासिस्ट या किसी व्यक्ति के प्रति गलत बातें प्रस्तुत करता हो।
  • अन्य आपूर्तिकर्ताओं, उत्पादों, उपचारों के लिए कोई अपमानजनक संदर्भ। भले ही इसमें टिप्पणियां प्रत्यक्ष या निहित हों, इसकी अनुमति नहीं है।
  • भ्रामक या अतिरंजित बयान या दावे।
  • बीमारी या स्वास्थ्य के लक्षणों के संदर्भ में “इलाज” शब्द का इस्तेमाल।
  • चिकित्सीय प्रभाव की गारंटी
  • विज्ञापनों के माध्यम से भय बढ़ाने का प्रयास।
  • ग्राहक द्वारा भुगतान किए गए धन को वापस करने का प्रस्ताव
  • पुरस्कार, प्रतियोगिता या समान योजनाएं।
  • दवाइयों या मिश्रणों को देते वक्त ऐसे किसी चिकित्सक या अस्पताल, या “डॉक्टर” या “डॉ. ” या “नर्स” शब्दों का इस्तेमाल करना, जो वैध नहीं हैं।
  • यौन कमजोरी, समय से पहले बुढ़ापा या पौरुष की कमी का संदर्भ।
  • यौन प्रकृति की शिकायतों का संदर्भ।

यदि कोई फार्मेसी जानती है, या जान सकती है कि कोई मिश्रण ऐसे साधनों द्वारा विज्ञापित किया जाता है, जिसमें ऐसे मिश्रणों को फार्मेसी में प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए।