महिला से संबंधित अपराधों के लिए एफ़आईआर दर्ज करना

यदि आप निम्नलिखित में से किसी अपराध के बारे में जानकारी देना चाहते हैं तो ऐसी जानकारी किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी अन्य महिला अधिकारी को ही दर्ज करानी होती है:

ऊपर बताए गए 3 से 12 तक के अपराधों के लिए अगर किसी मानसिक या शारीरिक विकलांगता (अस्थाई या स्थायी दोनों) से पीड़ित किसी महिला पर ऐसा अपराध किया गया है या ऐसे अपराध का आरोप लगाया गया है तो ऐसी जानकारी किसी पुलिस अधिकारी को उनके आवास या किसी ऐसे स्थान पर दर्ज की जाएगी जो रिपोर्टिंग करने वाले व्यक्ति के लिए सुविधाजनक हो। परिस्थितियों के आधार पर, वे रिपोर्ट करने के लिये किसी दुभाषिए या विशेष शिक्षाविद् की सहायता का भी अनुरोध कर सकते हैं।

पुलिस के कर्तव्य:

सूचित करना

गिरफ्तारी के 12 घंटों के भीतर, पुलिस अधिकारी को इसके बारे में पुलिस नियंत्रण कक्ष (पुलिस कंट्रोल रूम) को सूचित करना होगा:

  • आपकी गिरफ्तारी के बारे में
  • वह जगह जहां आपको हिरासत में रक्खा जा रहा है।

छान-बीन करना

जांच के दौरान पुलिस केस की छान-बीन करेगी और इसकी एक केस डायरी बनाएगी। केस डायरी एक अधिकारी द्वारा रखी गई दैनिक डायरी है जो जांच में होने वाली सभी घटनाओं का विवरण देती है। पुलिस मजिस्ट्रेट को, केस डायरी की प्रविष्टियों (एंट्रीज़) की एक प्रतिलिपि देने की जरूरत होगी।

आरोप पत्र (चार्जशीट )

जांच के आधार पर पुलिस फिर एक आरोप पत्र दायर करेगी। यदि आरोपी व्यक्ति पुलिस हिरासत में है तो, आरोप पत्र 90 दिनों के भीतर ही दायर कर दिया जाना चाहिए।

गैर-जमानती अपराधों के लिए जमानत

गैर-जमानती अपराध के आरोप में भी, कुछ मामलों में आपको जमानत दी जा सकती है:

  • अगर जांच या मुकदमे के किसी भी चरण में, अधिकारी या न्याालय को यह लगता है कि अभियुक्त ने गैर-जमानती अपराध नहीं किया है, तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है।
  • यदि गैर-जमानती अपराध के आरोप में किसी व्यक्ति के मुकदमे में 60 दिनों से ज्यादा समय लगता है, और वह व्यक्ति 60 दिन से जेल में हो, तो अदालत उसे रिहा कर सकती है और उसे जमानत दे सकती है।

आरोप पत्र

एक बार जब आपने अपराध की सूचना एफआइआर दर्ज करके दे दी, तो इसके बाद प्रभारी अधिकारी को यह रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी, जो बिना किसी अनावश्यक देरी के मामले पर ध्यान देंगे और जांच को आगे बढ़ाएंगे। यह अनिवार्य कदम है जिसका पालन पुलिस को करना होगा, क्योंकि इसके चलते मजिस्ट्रेट को जांच अपने नियंत्रण में लेने की अनुमति मिलती है और यदि आवश्यक हो तो वे इसपर पुलिस को उचित दिशा-निर्देश देते हैं।

पुलिस मामले के तथ्यों और स्थितियों की जांच करेगी, और यदि आवश्यक पड़ी तो अपराध करने वाले व्यक्ति की पहचान करके उसे गिरफ्तार करने की कोशिश करेगी।

यदि पुलिस अधिकारी को लगता है कि मामला गंभीर प्रकृति का नहीं है तो वह जांच करने के लिए एक अधीनस्थ अधिकारी को निर्धारित कर सकता है। साथ ही यदि उन्हें ऐसा लगता है कि आगे जांच के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं तो वे कुछ भी नहीं करेंगे।

जब पुलिस जांच की कार्रवाई पूरी कर लेती है और उसे आपराधिक मामला को आगे बढ़ाने के लिये पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं तो वे आरोप पत्र दाखिल करते हैं। यदि जांच के बाद उन्हें उस अपराध को साबित करने का कुछ नहीं मिलता है तो वे मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘समापन (क्लोज़र) रिपोर्ट’ दाखिल कर, मामले को बंद करने का सुझाव देंगे।

आरोप पत्र का दाखिल होने के साथ ही किसी आपराधिक मुकदमें की शुरूआत होती है। पुलिस के पास आरोप पत्र या समापन रिपोर्ट दाखिल करने के लिये कोई समय सीमा नहीं होती है। यहां तक कि मजिस्ट्रेट भी किसी विशेष अवधि के अंदर आरोप पत्र दाखिल करने के लिए पुलिस को बाध्य नहीं कर सकता है। लेकिन यदि कोई अभियुक्त जेल में है तो उसके पास आरोप पत्र दाखिल करने के लिए या तो 60 दिन (जहां अपराध की सजा 10 साल से कम हो), या 90 दिन (जहां अपराध की सजा 10 साल से अधिक हो) का समय है।

एक महिला को गिरफ्तार करना

गिरफ्तारी करते समय, पालन किये जाने वाले आवश्यक सभी नियमों के अलावा, एक महिला को गिरफ्तार करते समय पुलिस को कुछ अन्य महत्वपूर्ण चीजों को ध्यान में रखना होगा। वे हैं:

  • सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले एक महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता (जब तक कि असाधारण परिस्थितियाँ हैं नहीं)।
  • जब एक महिला को गिरफ्तार किया जा रहा है उस वक्त, एक महिला पुलिस सिपाही को उपस्थित रहना चाहिए।
  • असाधारण परिस्थितियों में, जब रात में एक महिला को गिरफ्तार किया जाना है तो, महिला पुलिस अधिकारी को एक लिखित अनुमति, स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट से लेनी होगी।
  • हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अब, कुछ हद तक इस नियम में ढ़ील दी है। अगर गिरफ्तार करने वाला अधिकारी समुचित रूप से संतुष्ट है और यदि महिला अधिकारी उपलब्ध नहीं है, और महिला अधिकारी की उपलब्धि में देरी, जांच में बाधा डाल सकती है, तो वह स्वयं जाकर महिला को गिरफ्तार कर सकता है। लेकिन गिरफ्तारी से ठीक पहले या, उसके तुरंत बाद उसे अपने ‘गिरफ्तारी ज्ञापन’ में, अपनी कार्यवाइयों के कारणों और परिस्थितियों के बारे में, बताना होगा।

अग्रिम जमानत

कानून हर वैसे व्यक्ति को जमानत के लिए आवेदन करने की इजाजत देता है, जिसे भले ही अभी गिरफ्तार नहीं किया गया हो, लेकिन निकट भविष्य में उसे अपनी गिरफ्तारी का भय/संदेह है। इस प्रकार की जमानत को अग्रिम जमानत के रूप में जाना जाता है। पुलिस उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती जिसके पास अग्रिम जमानत का आदेश है।

अग्रिम जमानत तभी हो सकेगी जब आपके खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है, या यदि पुलिस आपको किसी एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार करने आ चुकी है। कई राज्यों में यह नियम लागू नहीं है, उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश।

अक्सर लोगों के खिलाफ झूठे और बेबुनियाद मामलों में एफआईआर दायर किए जाते हैं। इससे लोगों की प्रतिष्ठा और समय का नुकसान पहुंचाया जा सकता है। ऐसी समस्याओं से बचने के लिए, और यदि उन्हें यह विश्वास करने का आधार हैं कि उन्हें भविष्य में गैर-जमानती अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वे, गिरफ्तार किए जाने से पहले उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। अगर न्यायालय इस जमानत आवेदन के लिए उचित कारण देखता है, तो न्यायालय जमानत की अनुमति दे सकता है। अग्रिम जमानत के अर्जी के सुनवाई के दौरान आवेदक को अदालत के समक्ष उपस्थित रहना अनिवार्य है।

जमानत द्वारा प्रदान की गई इस प्रकार की सुरक्षा केवल सीमित अवधि के लिए होती है, और आमतौर तब तक मान्य है, जब तक पुलिस ने आपके खिलाफ आरोप नहीं गढ़े हैं। हालांकि, कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की अवधि बढ़ाने के लिये आवेदन कर सकता है।

यदि कोई पुलिस अधिकारी आपका एफआईआर दर्ज करने से इन्कार करता है तो इसकी शिकायत कहां करें

यदि कोई पुलिस अधिकारी आपकी शिकायत स्वीकार नहीं करता है तो आप अपनी शिकायत लिखकर पुलिस अधीक्षक को भेज सकते हैं। यदि पुलिस अधीक्षक को लगता है कि आपके मामले में दम है तो वह उस मामले की जांच-पड़ताल शुरू करने के लिए पुलिस कर्मी की नियुक्ति कर सकता/सकती है।

गिरफ्तारी करने का अधिकार

हांला कि कानून के विभिन्न अधिकारियों को गिरफ्तारी करने का अधिकार है, वे आम तौर पर पुलिस द्वारा ही किए जाते हैं। पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बारे में अधिक समझने के लिए कृपया हमारे ‘व्याख्याता’ (‘एक्सप्लेनर’) को पढ़ें।

कानून, पुलिस के अलावा मजिस्ट्रेटों को, लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार देता है अगर किसी व्यक्ति ने अपराध किया हो। दो प्रकार के मजिस्ट्रेट होते हैं, कार्यकारी मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट। एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का उदाहरण है, तहसीलदार। और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का उदाहरण है न्यायाधीश।

कानून, कुछ परिस्थितियों में, सामान्य लोगों को भी गिरफ्तारी करने की अनुमति देता है अगर वे किसी और को एक गंभीर अपराध करते देखते हैं। ऐसे मामलों में, गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति, उसको रोक कर रक्खे नहीं रह सकता है, बल्कि उसे बिना किसी अनावश्यक देरी के, निकटतम पुलिस स्टेशन में ले जाकर एक पुलिस अधिकारी को सौंप देना चाहिए।

अग्रिम जमानत के लिए शर्तें

अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर रहे व्यक्ति को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा, या उसका वादा करना होगा:

-आवश्यकता होने पर वह व्यक्ति, पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ के लिए उपलब्ध रहेगा।
-वह व्यक्ति, प्रयत्यक्ष रुप से या अप्रत्यक्ष रुप से, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे इस मामले के तथ्यों की जानकारी है, उसे अदालत में या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से, न रोकेगा, न धमकी देगा या डरायेगा, न कोई वादा करेगा।
-वह व्यक्ति, न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना, भारत नहीं छोड़ेगा।
-शेष शर्तें, नियमित जमानत के शर्तों के समान हैं।

अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ मौलिक अधिकार

अगर आपको पता है कि किसी व्यक्ति को, पुलिस या किसी प्राधिकारी ने हवालात में रक्खा है, या गिरफ्तार किया है लेकिन कोई कारण नहीं बता रहा है, तो ऐसे मामलों में, गिरफ्तार व्यक्ति या उसका कोई रिश्तेदार, भारत के किसी भी उच्च न्यायालय में या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर कर सकता है।

भारत का संविधान हर किसी को न्यायालय से यह निवेदन करने का मौलिक अधिकार देता है कि न्यायालय, गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी को, गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को पेश करने के लिये आदेश करे, और यह भी जाँच करे कि क्या यह गिरफ्तारी वैध है।

इस मौलिक अधिकार का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और उसे एक ‘हवालात प्राधिकारी’ (डीटेनिंग ऑथोरिटी) की हिरासत में रक्खे रहता है:

  1. बिना गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किए; या
  2. अपनी पसंद के कानूनी व्यवसायिक द्वारा बचाव किये जाने के अधिकार से वंचित कर दिया है।

यह मौलिक अधिकार अत्यंत ही व्यापक है। कब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर किया जा सकता है इसे अधिक समझने के लिए कृपया किसी कानूनी व्यवसायी से बात करें।