बिना जमानत के, कारावास का अधिकतम सीमा

जो लोग जेल में हैं, और उनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं तो उन्हें अंडर-ट्रायल कैदी कहा जाता है। चूंकि भारत में मुकदमें कई वर्षों तक चलते रहते हैं, इसलिए अंडर-ट्रायल कैदियों को, अपराध के लिये दोषी सिद्ध हुए बिना, लंबे समय तक जेल में रहने से, उन्हें बचाया जाना चाहिए। कानून में अंडर-ट्रायल कैदियों की रक्षा के लिए जमानत के प्रावधान हैं।

अगर एक व्यक्ति को किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया है और वह उस अपराध के लिए निर्दिष्ट कारावास की अधिकतम सीमा से आधे समय तक जेल में रह चुका है, तो न्यायालय को उन्हें रिहा करने का आदेश जरूर देना चाहिये।

फिर भी, यदि न्यायालय को पर्याप्त कारण मिलते हैं तो वह अंडर-ट्रायल कैदी की निरंतर हिरासत में रखने का आदेश दे सकता है, यद्यपि वे सजा के अधिकतम सीमा के आधे समय से अधिक तक जेल में रह चुके हैं।

मजिस्ट्रेट के सामने पेशी

कोई भी व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और पुलिस की हिरासत में रक्खा गया है, गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के अंदर उसे निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। पुलिस द्वारा हर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना इसलिए जरूरी है यह सुनिश्चित हो सके कि व्यक्ति की गिरफ्तारी के पीछे समुचित कानूनी आधार हैं। गिरफ्तारी के ज्ञापन समेत सभी दस्तावेजों की प्रतियों को, संबंधित मजिस्ट्रेट को उनके रिकॉर्ड के लिए भेजी जानी चाहिए। ऐसे मामलों में जब आरोपी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया जा रहा है, तो एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर की जा सकती है।

पुलिस द्वारा जारी अधिसूचना (नोटिस)

ऐसे मामलों में जहां पुलिस किसी वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकती है लेकिन उसकी राय यह है कि इसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, तो ऐसे व्यक्ति को पुलिस अपने समक्ष, या किसी निर्दिष्ट स्थान पर पेश होने के लिए अधिसूचना जारी कर सकती हैं। हालांकि, इस तरह की अधिसूचना जारी करने के लिए यह शर्त है कि उसके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज हो, या कुछ उचित संदेह मौजूद हो कि उसने ऐसा एक अपराध किया है।

जब किसी व्यक्ति को ऐसी अधिसूचना जारी की जाती है, तो उसे अधिसूचना की शर्तों का पालन करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य है। जब तक व्यक्ति उसका पालन करता रहता है, तब तक पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं करेगी (जब तक कि उनका मत यह बने कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए, और यह मत लिखित में दर्ज किया गया हो कि अब गिरफ्तारी आवश्यक है)।

यदि पुलिस द्वारा अधिसूचना दिया गया व्यक्ति, अधिसूचना के निर्देशों का पालन नहीं करता है या स्वयं को पहचानने से इनकार करता है, तो पुलिस अधिकारी उसे अधिसूचना में उल्लेखित अपराध के लिए गिरफ्तार कर सकता है, और फिर पुलिस उस व्यक्ति के गिरफ्तारी का आदेश पाने के लिए न्यायालय से संपर्क करेगी।