आपको जमानत का अधिकार है। जमानती अपराधों के मामले में इस अधिकार का सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है। गैर जमानती अपराधों के लिए यह अधिकार न्यायालय के विवेक पर निर्भर है।
जमानत देने का तर्क यह है कि, अगर आरोपी के भागने का कोई बड़ा संदेह/खतरा नहीं है, तो इसका कोई कारण नहीं है कि उसे कैद में रखा जाए। जमानत का मिलना आमतौर पर मुकदमें के शुरुआती चरण में आता है।
न्यायालय किसी व्यक्ति को जमानत देते वक्त उसके लिंग, स्वास्थ्य और आयु को ध्यान में रखता है।यदि आप निम्नलिखित श्रेणी में से हैं, तो न्यायालय आपको अधिक आसानी से जमानत दे सकता है:
- महिलाएं
- सोलह वर्ष से कम उम्र के बच्चे
- बीमार और अशक्त लोग
आप एफआइआर दर्ज कर सकते हैं यदि आप:
- किसी जुर्म के शिकार हैं।
- किसी जुर्म के शिकार व्यक्ति के परिचित या दोस्त हैं।
- आपको किसी ऐसे जुर्म की जानकारी है जो किया जा चुका है या होने वाला है।
जरूरी नहीं है कि एफआइआर दर्ज कराने के लिए आपको अपराध की पूरी जानकारी हो। लेकिन यह जरूरी है कि आप जो कुछ भी जानते हैं, उसकी सूचना पुलिस को दें।
एफआइआर अपने आप में किसी के खिलाफ दर्ज कोई आपराधिक मामला नहीं है। यह सिर्फ किसी अपराधिक जुर्म से संबंधित पुलिस द्वारा प्राप्त की गई सूचना है। एक आपराधिक मामला तब शुरू होता है जब न्यायालय के समक्ष पुलिस द्वारा आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है और राज्य द्वारा इसके लिये एक सरकारी वकील की नियुक्ति की जाती है।
एक गिरफ्तारी तब होती है जब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा शारीरिक रूप से हिरासत में लिया जाता है। किसी भी व्यक्ति को, पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी के कारणों को बिना बताये, और किस कानून के अंतर्गत उसकी गिरफ्तारी की जा रही है इसकी सूचना बिना दिये, हिरासत में नहीं लिया जा सकता है।
आम तौर पर, पुलिस को किसी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट की आवश्यकता होती है। जिन अपराधों के लिए वारंट की आवश्यकता होती है उन्हें गैर-संज्ञेय अपराध कहा जाता है। एक गैर-संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर, पुलिस को मजिस्ट्रेट से किसी खास व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति लेनी होगी। मजिस्ट्रेट से प्राप्त यह अनुमति, वारंट के रूप में जानी जाती है।
जब एक आरोपी व्यक्ति अदालत/पुलिस को आश्वासन देता है कि वह रिहा होने पर समाज से भागेगा नहीं और कोई नया अपराध नहीं करेगा, तब उसे जमानत दी जाती है । अतः, जमानत आमतौर पर इनमें से किसी एक खास तरीके से मिलता है:
जमानती बॉण्ड
जमानती बॉण्ड वह पैसा है जिसे किसी व्यक्ति द्वारा जमानत मिलने के लिये न्यायालय के पास जमा करना होगा। आरोपी व्यक्ति कहीं भाग नहीं जाए यह सुनिश्चित करने के लिये कि ऐसा किया जाता है। अपराध की प्रकृति के आधार पर जमा की गई राशि, कम या ज्यादा हो सकती है। यदि आपके पास पैसा नहीं है, तो ऐसी स्थिति में जमानत पाने के लिए आपकी संपत्ति को संलग्न किया जा सकता है। जमानत की राशि का कोर्ट में जमा होना या आपकी संपत्ति का संलग्न होना जमानत के लिए अनिवार्य है। जमानत बॉण्ड के तहत, न्यायालय उस व्यक्ति को देश की सीमा क्षेत्र न छोड़ने का आदेश दे सकता है, और जब भी जरूरत हो न्यायालय को रिपोर्ट करने के लिए कह सकता है।
व्यक्तिगत बॉण्ड
कुछ मामलों में आरोपी व्यक्ति को जमानत देते समय, न्यायालय उसे जमानती बॉण्ड से छूट दे सकता है, बल्कि इसके बदले उन्हें उनके वादे पर ही छोड़ सकता है, आमतौर पर इसे व्यक्तिगत बॉण्ड के रूप में जाना जाता है। व्यक्तिगत बॉण्ड पर जमानत किसी प्रतिभूति (स्युरिटी) के साथ, या बिना किसी प्रतिभूति के भी दी जा सकती है। न्याालय के पास ऐसे मामले में विवेकाधिकार है ताकि वे बिना प्रतिभूति के व्यक्तिगत बॉण्ड ले कर, एक आरोपी को रिहा कर सकें।
प्रतिभूति (स्युरिटी)
जब आप जमानत के लिए न्याालय से संपर्क करते हैं, तो कभी-कभी न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए आप भाग नहीं जाएंगे, पर्याप्त गारंटी चाहता है। न्यायालय आपसे कुछ लोगों को, प्रतिभूति के तौर पर, यह जिम्मेदारी लेने के लिए कह सकता है। एक ही व्यक्ति को हमेशा के लिये प्रतिभूति के रूप में रहने की जरूरत नहीं है। एक व्यक्ति जो प्रतिभूति के रूप में दर्ज है, वह किसी समय स्वयं को प्रतिभूति की जिम्मेदारी से ‘मुक्त’ होने के लिए आवेदन कर सकता है। ऐसी परिस्थिति में, आपको अपने प्रतिभूति को बदलने की जरूरत पड़ेगी। आपको किसी और व्यक्ति को न्यायालय में ले जाने की जरूरत होगी जो आपके नये प्रतिभूति के तौर पर दस्तखत कर दे। यदि आप प्रतिभूति को बदल नहीं सकते हैं, तो आपको पुनः हिरासत में ले लिया जाएगा।
यदि कोई अपराध हुआ हो तो:
- आप नजदीकी पुलिस थाने में जाएं: पुलिस थाना उस इलाके में होना जरूरी नहीं है जिस इलाके में अपराध हुआ हो। नजदीकी पुलिस थाने का पता लगाने के लिए कृपया ‘इंडियन पुलिस एट योर कॉल’ एप्प को डाउनलोड करें।
एंड्रायड फोन उपयोग करने वालों के लिए: https://play.google.com/store/apps/details?id=in.nic.bih.thanalocator&hl=en
एप्पल फोन उपयोग करने वालों के लिए: https://itunes.apple.com/in/app/indian-police-at-your-call/id1177887402?mt=8
जब आप एफआइआर दर्ज कराने पुलिस थाने जाते हैं, तो निम्नलिखित होता है:
- आपको किसी ड्यूटी ऑफिसर के पास भेजा जाएगा। आप अधिकारी को या तो मौखिक रूप से बता सकते हैं कि क्या हुआ, या खुद विवरण लिख कर दे सकते हैं। अगर आप पुलिस को मौखिक रूप से बताएंगे, तो उन्हें उसे लिखना ही होगा।
- ड्यूटी ऑफिसर इसके बाद जेनरल डायरी या डेली डायरी में एक प्रविष्टि (एंट्री) करेंगे।
- अगर आपके पास लिखित शिकायत है, तो कृपया दो प्रतियां लेकर ड्यूटी ऑफिसर को दे दीजिए। दोनों पर मुहर लगेगी और एक आपको लौटा दिया जाएगा। स्टांप पर डेली डायरी नंबर या ‘डीडी’ नंबर रहता है जो इसका प्रमाण है कि उन्हें आपकी शिकायत प्राप्त हो गई है।
- जब एक बार पुलिस ने इसे पढ़ लिया है, और यदि इसके सारे विवरण सही हैं तो आप एफआईआर पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। आपको मुफ्त में एफआइआर की एक कॉपी पाने का अधिकार है। आप एफआइआर नंबर, एफआईआर की तारीख और पुलिस थाने का नाम नोट कर लें। वैसी स्थिति में जब आपकी कॉपी गुम हो जाय तो आप इन विवरणों का इस्तेमाल कर ऑनलाइन से, एफआइआर को निशुल्क देख सकते हैं।
एफआइआर के दर्ज होने के बाद, उसकी विषय-वस्तु में बदलाव नहीं किया जा सकता है। हालांकि बाद में आप किसी भी समय पर अतिरिक्त जानकारी पुलिस को दे सकते हैं।
कुछ राज्यों एवं शहरों में एफआइआर और शिकायतों को ऑनलाइन दर्ज की जा सकती हैं।
उदाहरण के लिए, दिल्ली में गुमशुदा व्यक्तियों या बच्चों, अज्ञात बच्चों या व्यक्तियों या शवों, वरिष्ठ नागरिक पंजीकरण, चोरी या लावारिस वाहन खोज या गुम हुए मोबाइल फोन के मामलों के लिए, ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है।
जब आपको गिरफ्तार किया जा रहा है, तो इससे पहले कि आप हिरासत में ले लिये जाएं, आप एक व्यक्ति (दोस्त या परिवार के सदस्य) को चुन सकते हैं जिन्हें, आपकी गिरफ्तारी की खबर पुलिस को देनी होगी। यदि गिरफ्तार व्यक्ति के दोस्त या परिवार किसी और जिले या शहर में रहते हैं, तो पुलिस को उन्हें. आपकी गिरफ्तारी के बारे में सूचित करना ही होगा। उन्हें निम्नलिखित जानकारी देनी होगी:
- गिरफ्तारी का समय
- गिरफ्तारी की जगह
- गिरफ्तार किये व्यक्ति को किस जगह हिरासत में रक्खा गया है
पुलिस, गिरफ्तारी के 8 से 12 घंटे की अवधि के अंदर, जिले की ‘कानूनी सहायता संगठन’ (‘लीगल एड ऑर्गनाइज़ेशन’) और उस क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के माध्यम से, उसके रिश्तेदार या दोस्त को सूचित करती है।
गैर-जमानती अपराधों के लिए न्यायालय आपको जमानत देने से इनकार कर सकता है, जब आपके द्वारा किए गए अपराध का दण्ड निम्न श्रेणी में हो तो अदालत आपको जमानत देने से इन्कार कर सकता है:
-मौत की सजा,
-आजीवन कारावास,
-7 साल से अधिक जेल की सजा,
-अगर अपराध संज्ञेय (कॉग्निज़ेबल) है, या
- यदि आपको दो या दो से अधिक मौकों पर संज्ञेय अपराध के लिये दोषी पाया गया है, जिसके लिये आपको तीन साल या उससे अधिक के कारावास (लेकिन सात साल से कम नहीं) की सजा से दंडित किया जा चुका है।
किसी भी पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज की जा सकती है। यह हो सकता है कि अपराध उस पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ हो, पर इससे चलते शिकायत दर्ज कराने में कोई अड़चन नहीं है। पुलिस के लिए यह अनिवार्य है वह उपलब्ध कराई गई जानकारी को दर्ज करे, और फिर उसे उस थाने में स्थानांतरित करना जिसके क्षेत्र में/अधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ है। उदाहरण के लिए, यदि कोई अपराध का मामला उत्तरी दिल्ली में हुआ हो तो उसकी सूचना दक्षिणी दिल्ली के किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है।
इस संकल्पना को सामान्य तौर पर “जीरो एफआइआर” के रूप में जाना जाता है और इसे सन् 2013 में शुरू किया गया था। जीरो एफआइआर शुरू होने से पहले बड़े पैमाने पर देरी हुआ करती थी क्योंकि जिस इलाके में अपराध हुआ होता था, वहां की ही पुलिस स्टेशन सूचना को दर्ज कर सकती थी।
जब आपकी गिरफ्तारी हो रही है, उस समय आपके पास कुछ अधिकार हैं, जो हैं:
- आप पुलिस से, उनकी पहचान पूछ सकते हैं क्योंकि उन्हें अपने पदनाम सहित नाम का स्पष्ट टैग पहने रहना चाहिये, जो सही हो, और साफ दिखे।
- आप पुलिस से अपने वकील को फोन करने के लिए कह सकते हैं। अगर आपका अपना वकील नहीं है या आप वकील का खर्चा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, तो आप न्यायालय से अपने लिए एक वकील नियुक्त करने के लिए निवेदन कर सकते हैं।
- आप पुलिस को, अपनी गिरफ्तारी का वारंट, पुलिस रिपोर्ट और आपकी गिरफ्तारी से संबंधित अन्य दस्तावेजों को दिखाने के लिए कह सकते हैं, और पुलिस को, यह सब आपको दिखाना ही होगा।
- आपको अपने हस्ताक्षर करने से पहले, पुलिस द्वारा तैयार किये गये गिरफ्तारी के ज्ञापन की सटीकता की जाँच जरूर कर लेनी चाहिए। गिरफ्तारी के ज्ञापन में गिरफ्तारी की तारीख और समय लिखित होना चाहिए, और कम से कम एक गवाह द्वारा प्रमाणित किया रहना चाहिए।
- पुलिस द्वारा आपको यह सूचित किया जाना चाहिए कि इस अपराध के लिए आपको जमानत मिल सकती है।
- आप किसी प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा, अपने शरीर पर प्रमुख और मामूली चोटों को जांच कराने के लिए कह सकते हैं और पुलिस को इसका पालन करना होगा। यदि आप उनकी हिरासत में हैं तो यह जाँच हर 48 घंटों पर की जानी चाहिए। इस शारीरिक जाँच को ‘निरीक्षण ज्ञापन’ (‘इन्सपेक्शन मेमो’) में दर्ज की जानी चाहिए और इस पर पुलिस अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए। जब आप उनकी हिरासत में होते हैं तो पुलिस द्वारा अपराधी पर हिंसा करने से रोकने के लिए, यह किया जाता है।
- आपको हस्ताक्षरित निरीक्षण ज्ञापन की एक प्रति प्राप्त होनी चाहिए।
ऐसे मामलों में जहां न्यायालय का मानना है कि कार्यवाही के किसी भी चरणों के दौरान, वह व्यक्ति:
-गवाहों को भयभीत करने, रिश्वत देने या छेड़छाड़ करने में लगा है,
-फरार होने या भागने की कोशिश कर रहा है।
तब न्यायालय उसकी जमानत रद्द कर सकती है, और उस व्यक्ति को फिर से गिरफ्तार कर सकती है। यह बात दोनों, जमानती और गैर-जमानती अपराधों पर लागू होती है। जमानत रद्द तब होता है जब व्यक्ति, अपनी रिहाई के बाद ऐसा आचरण करता है जिससे मुकदमें की निष्पक्ष कार्यवाही की संभावना पर बाधा उत्पन्न हो सकती है।