एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक के सामान्य कर्तव्य

नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक के कुछ कर्तव्य नीचे दिए गए हैं:

अपनी सेवाओं का विज्ञापन करना

एक नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक को निम्नलिखित बातें नहीं करनी चाहिए:

  • किसी भी विकलांग व्यक्ति को काम के लिये याचना, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करना। इसमें विज्ञापन, परिपत्र (सर्कुलर), हैंड-बिल आदि शामिल हैं। हालांकि, नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक औपचारिक रूप से प्रेस के माध्यम से, अपना पेशा शुरू करने / पुनः शुरू करने, पेशे में परिवर्तन, पते में परिवर्तन, पेशे के समापन, और पेशे से अस्थायी अनुपस्थितियों के बारे में घोषणा कर सकते हैं।
  • वे अपने योग्यताओं का प्रदर्शन साइन बोर्ड, लेटर हेड पैड, पर्ची, विजिटिंग कार्ड, प्रमाण पत्र, रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों पर सकते हैं, जिस पर मनोवैज्ञानिक के हस्ताक्षर होते हैं। पंजीकरण प्रमाण पत्र को स्पष्ट रूप से पेशे के स्थान पर दिखाया जाना चाहिए।
  • मनोवैज्ञानिक को अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र के अलावे, किसी भी अन्य क्षेत्र में पेशा नहीं करना चाहिये।

शुल्क और भुगतान

नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों को अत्यधिक शुल्क नहीं लेना चाहिए। इसके अलावा, एक मनोवैज्ञानिक को ‘जब तक इलाज नहीं, तब तक भुगतान नहीं’ के सौदे में नहीं जाना चाहिए।

मरीजों का विवरण

नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों को मरीजों के विवरण, उन्हें दी गई प्रेसक्रिप्शन, शुल्क आदि का एक रजिस्टर में बनाए रखना चाहिए।

इसके अलावा, नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों का कर्तव्य है कि वे गोपनीयता बनाए रखें। इसमें उनके मरीज के मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल उपचार और शारीरिक स्वास्थ्य देखभाल आदि की गोपनीयता के बारे में जानकारी शामिल है।

मरीजों का इलाज और देखभाल

एक नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक को विकलांग लोगों के पुनर्वास या उपचार का कार्य नियमित और आवश्यक अंतराल पर, या उचित समय पर करना चाहिए। हालांकि, उन्हें निम्नलिखित चीजें नहीं करनी चाहिए:

  • विकलांग व्यक्तियों के साथ किसी भी बीमारी की अवधि या उसकी तीव्रता के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताना।
  • मरीज के साथ किसी भी अनुचित गतिविधि या कोई अनुचित संबंध में शामिल होना।
  • विकलांग व्यक्ति के साथ कठोर और असभ्य भाषा का प्रयोग करना।
  • विकलांग व्यक्ति की परिस्थिति का अनुचित लाभ उठाना।
  • किसी भी विकलांग व्यक्ति की जानबूझकर उपेक्षा करना।
  • किसी भी तरह का लाभ विकलांगता से पीड़ित लोगों से उठाने का प्रयास करना।

इन कर्तव्यों का उल्लंघन ‘दुराचार’ (मिसकंडक्ट), के रूप में माना जाएगा और भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा उस मनोवैज्ञानिक को अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी बना सकता है।

बाल श्रम पुनर्वास-सह-कल्याण कोष

बाल श्रम पुनर्वास-सह-कल्याण कोष एक ऐसा कोष है जो हर एक या दो जिलों के लिए स्थापित किया जाता है। नियोक्ता द्वारा भुगतान किया गया जुर्माना इस कोष में जमा किया जाता है। इसके अलावा, सरकार को प्रत्येक बच्चे या किशोर के लिए 15000 रुपये या उससे अधिक जमा करने होंगे, जिसके लिए नियोक्ता पर जुर्माना लगाया गया है। इस फंड की देखरेख बैंक द्वारा की जाती है। बैंक में जमा पैसे पर मिलने वाली ब्याज, बच्चे को दी जाती है।

बाल श्रम को रोकने के लिए एक निरीक्षक का कर्तव्य सरकार निरीक्षकों को यह सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त करती है कि कोई अवैध रोजगार न हो और कानून के अनुसार किशोरों को अनुमत रोजगार दिया जाए। एक निरीक्षक या पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है:

  • उन स्थानों का समय-समय पर निरीक्षण करना जहां बच्चों को काम करने की अनुमति नहीं है।
  • उन उद्योगों का निरीक्षण करना शुरू करें जहां पर बच्चों, किशोरों और किशोरियों को काम पर लगाया जाता है।
  • पारिवारिक उद्यमों में बच्चों की कामकाजी स्थितियों की जांच करना।
  • बाल श्रम की शिकायतों को स्वीकार करना और बाल श्रम के अवैध कृत्यों की न्यायालय में रिपोर्ट करना।
  • अगर संदेह है कि बच्चा 14 साल से कम उम्र का है, तो बच्चे की असल उम्र का पता लगाएं।

संस्था के नियोक्ता द्वारा बनाए गए रजिस्टर का निरीक्षण करें, जिसमें निम्नलिखित विवरण होगा:

  • नाम और बच्चे के जन्म की तारीख संबंधित दस्तावेजों के साथ काम पर रखने की तारीख आदि।
  • घंटे और काम की अवधि (आराम के घंटे सहित)।
  • बच्चा जो काम कर रहा है और उसकी प्रकृति।

सभी निरीक्षकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि यदि कोई बच्चा अवैध रूप से नियोजित किया जा रहा है, तो संबंधित नियोक्ता को 20000 रु. बाल श्रम पुनर्वास-सह-कल्याण कोष में जुर्माने के रूप में जमा कराए, जिसे बच्चा बाद में ले सकता है।

झूठी शिकायत

झूठी शिकायत यदि किसी खास मकसद से की गई है, या समिति को फर्जी दस्तावेजों दी गई तो कानून इसे बहुत गंभीरता से लेता है। यदि कोई पीड़िता या उससे संबंधित कोई अन्य व्यक्ति, इनमें से कोई भी कार्य करता है तो उसे कार्यस्थल के सेवा नियमों के आधार पर दंडित किया जा सकता है। अगर कोई सेवा नियमावली नहीं हैं तो उनके खिलाफ की जाने वाली कारवाई समिति द्वारा तय की जा सकती है। सजा के तौर पर अभियुक्त को:

  • लिखित माफीनामा देना होगा
  • अभियुक्त को चेतावनी दी जायेगी या निंदा की जायेगी
  • अभियुक्त की पदोन्नति रुक सकती है
  • अभियुक्त की वेतन वृद्धि रुक सकती है
  • अभियुक्त को काम से निलम्बित किया जा सकता है
  • अभियुक्त को मनोविश्लेषक के पास काउंसलिंग सेशन के लिए भेजना पड़ सकता है
  • अभियुक्त को सामुदायिक सेवा करनी पड़ सकती है

यदि कोई पीड़िता समिति को पर्याप्त सबूत देने में असमर्थ है, इसका यह मतलब नहीं है कि उसकी शिकायत झूठी है। समिति को यह पता लगाना होगा कि क्या उसने किसी खास उद्देश्य से झूठी शिकायत की है।

उदाहरण के तौर पर, अगर ईशा रोहित के खिलाफ शिकायत करती हैं लेकिन उसमें न कोई गवाह है, ना ही कोई दस्तावेज, या ना ही कुछ ऐसा दिखता है जिससे लगता है कि उसका यौन उत्पीड़न किया गया है, तो भी उसकी शिकायत को झूठा नहीं माना जायेगा। लेकिन अगर ईशा ने, किसी दोस्त को ईमेल लिखकर यह बताया है कि उत्पीड़न के बारे उसने झूठ बोला है तो उसकी शिकायत को दुर्भावनापूर्ण या झूठा माना जायेगा।

अवैध रूप से बच्चों का पुनर्वास

कोई भी किशोर / बच्चा जो अवैध रूप से नियोजित किया गया है, उसका पुनर्वास किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अनुसार किया जाएगा। यह भारत में बच्चों के पुनर्वास के लिए बनाया गया कानून है।

बाल श्रम के प्रति सरकारी कर्तव्य केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बाल श्रम न होने दे और कानून के प्रावधानों का पालन कराए। इसके लिए सरकार को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए:

  • जन जागरूकता अभियान चलाएं
  • जागरूकता फैलाने के लिए मीडिया का उपयोग करें
  • बाल श्रम की रिपोर्टिंग को बढ़ावा दें
  • बाल श्रम के कानूनों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें
  • स्कूलों के सिलेबस में बाल श्रम कानूनों को शामिल करें
  • बाल श्रम कानून और उनकी भूमिका के बारे में पुलिस, न्यायिक सेवा अकादमियों, शिक्षकों, केंद्रीय श्रम सेवा के प्रशिक्षण को बढ़ावा दें।

गैर-याचना उपनियम

सहकर्मियों से अनधिकृत व्यवहार

यदि आपके अनुबंध में एक गैर-याचना उपनियम है, तो आप कंपनी के अन्य कर्मचारियों को किसी व्यवसाय, व्यापार या पेशे में, जो कंपनी के हित को नुकसान पहुंचा सकते हों, सूचीबद्ध नहीं कर सकते हैं। यह प्रतिबंध आप पर कंपनी में रोजगार करते समय और छोड़ कर जाने के बाद, दोनों समय लागू होता है।

उदाहरण के लिए, यदि हरप्रीत बेदी अपनी कंपनी शुरू करने के लिए ए.वाई.एस कंप्यूटर्स छोड़ते हैं, तो वह ए.वाई.एस के कर्मचारियों/सह-कर्मियों को अपने साथ नहीं ले जा सकते हैं। यदि वह ऐसा करते हैं, तो यह ए.वाई.एस के साथ अपने अनुबंध का उल्लंघन करेंगे और अनुबंध के उल्लंघन के लिए उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

ग्राहकों से अनधिकृत व्यवहार

रोजगार की प्रकृति के आधार पर, कुछ मामलों में, आप जिस कंपनी में नियोजित होते हैं उनका याचना का प्रतिबंध , ग्राहकों तक भी फैला रहता है। यदि आप किसी  कंपनी में शामिल होने के लिए या अपनी खुद की कंपनी शुरु करने के लिए अपनी वर्तमान कंपनी को छोड़ रहे हैं, तो आप उस कार्यस्थल के ग्राहकों को नहीं ले सकते। यह आपके पूर्व-नियोक्ता के व्यवसाय को प्रभावित करेगा और आप पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि लोकेश शर्मा अपनी कंपनी शुरू करने के लिए XYZ लिमिटेड को छोड़ते हैं, तो वे जाते समय अपने साथ XYZ लिमिटेड के ग्राहकों को नहीं ले जा सकते। यदि वह ऐसा करते हैं, तो वह XYZ लिमिटेड के साथ अपने अनुबंध का उल्लंघन करेंगे और अनुबंध के उल्लंघन के लिए उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

गैर-प्रतिस्पर्धा उपनियम

रोजगार अनुबंध में गैर- प्रतिस्पर्धा उपनियम मौजूदा कर्मचारी को नियोक्ता के व्यापार या समान क्षेत्र में अपने नियोक्ता के साथ प्रतिस्पर्धा करने से रोकता है।

कुछ उदाहरण हैः

  • यदि एक विशिष्ट तकनीक के साथ एयर प्यूरीफायर बनाने के व्यवसाय में हैं, तो उनका कर्मचारी Y उसी तकनीक के साथ प्रतिद्वंद्वी व्यवसाय नहीं शुरू कर सकता है।
  • हरपीत सिंह बेदी ए.वाई.एस कंप्यूटर्स में सेल्समैन हैं, जिनके साथ उनका गैर- प्रतिस्पर्धा उपनियम है। यदि हरपीत ए.वाई.एस में रोजगार करते समय, रॉकेट सेल्स कॉर्पोरेशन, नाम से व्यवसाय शुरू करते हैं, जो ए.वाई.एस के समान है, तो वह अपने अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और उन पर मुकदमा किया जा सकता है, क्योंकि वह उपनियम उन्हें ऐसा करने से विशेष रूप से मना करता है।

विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारियां

विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी उम्र की कोई भी महिला (छात्रा, शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारी) यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करा सकती है। कार्यस्थलों के अलावा विश्वविद्यालयों को भी यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए भी काम करना होगा।

कॉलेजों में निम्नलिखित चीजों को सुनिश्चित करना होगा:

  • उनके यौन उत्पीड़न नियमों को, भारतीय कानून के यौन उत्पीड़न नियमों को अनुकूल बनायें
  • यौन उत्पीड़न के शिकायतों को गंभीरता से लें, दोषी को कठोरता से दंडित करें और यह सुनिश्चित करें कि वे कानूनन जरूरी कार्यवाहियों का सामना करें।
  • कर्मचारी और छात्राओं में यह जानकारी सुनिश्चित करें, कि यौन उत्पीड़न का शिकार होने की स्थिति में, उन्हें क्या करना है और किसको शिकायत करनी है।
  • सुनिश्चित करें कि परिसर अच्छी तरह से प्रकाशित है, सुरक्षित और भय-रहित है
  • एक आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना, प्रशिक्षण और रखरखाव करना
  • मामलों के विवरण के साथ, वार्षिक वस्तु स्थिति (स्टेटस) रिपोर्ट तैयार करना और अर्धवार्षिक समीक्षा करना कि यौन उत्पीड़न की नीतियां किस हद तक ठीक काम कर रही हैं।

किसी डॉक्टर के सामान्य कर्तव्य

ऊपर दिए गए कर्तव्यों के अलावा एक डॉक्टर के कुछ सामान्य कर्तव्य भी होते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • पंजीकरण संख्या प्रदर्शित करना। पंजीकरण के बाद, राज्य चिकित्सा काउंसिल डॉक्टर को एक पंजीकरण संख्या देती है। इसे रोगियों को दिए गए सभी पर्चे, प्रमाण पत्र, धन प्राप्ति में प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
  • दवाओं के जेनेरिक नामों का उपयोग। किसी दवा का जेनेरिक नाम निर्दिष्ट ब्रांड नाम के बजाए उसके रासायनिक नाम या ड्रग के रासायनिक संरचना को संदर्भित करता है।

रोगी की देखभाल में उच्चतम गुणवत्ता का आश्वासन। आगे के डॉक्टरों को निम्नलिखित चीज़ें करनी चाहिए:

  • जिनके पास उचित शिक्षा नहीं है या जिनके पास उचित नैतिक चरित्र नहीं है उन लोगों को इस पेशे में दाखिल नहीं होने देना चाहिए।
  • किसी ऐसे पेशेवर अभ्यास के लिए नियुक्त न करें, जो किसी भी चिकित्सा कानून के तहत पंजीकृत या सूचीबद्ध नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि कोई डॉक्टर एक नर्स को काम पर रख रहा है, तो यह कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो पंजीकृत नर्स है, जो अभ्यास करने के योग्य है।
  • पेशे के अन्य सदस्यों के अनैतिक आचरण को उजागर करना।
  • डॉक्टरों को सेवा देने से पहले अपनी फीस की घोषणा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर के व्यक्तिगत वित्तीय हितों को रोगी के चिकित्सा हितों के साथ संघर्ष नहीं करना चाहिए।
  • देश के कानूनों का गलत इस्तेमाल नहीं करना और दूसरों को भी इसका लाभ उठाने में मदद नहीं करना।

मरीजों के प्रति कर्तव्य

  • हालांकि एक डॉक्टर उनके पास आने वाले हर मरीज का इलाज करने के लिए बाध्य नहीं हैं, लेकिन उन्हें हमेशा किसी बीमार और घायल के कॉल का जवाब देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। एक डॉक्टर मरीज को किसी दूसरे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दे सकता है, लेकिन आपातकालीन स्थिति में उन्हें मरीजों का इलाज कर देना चाहिए। किसी भी डॉक्टर को मरीजों को इलाज से इनकार मनमानी तरीके से नहीं करनी चाहिए।
  • एक डॉक्टर को धैर्यवान और सहज होना चाहिए, और हर एक मरीज की गोपनीयता का सम्मान करना चाहिए। मरीज की स्थिति की बताते समय, डॉक्टर को न तो मरीज की स्थिति की गंभीरता को कम करना चाहिए, और न ही उसे बढ़ा-चढ़ा कर बताना चाहिए।
  • उसके द्वारा किसी भी मरीज को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। एक बार जब डॉक्टर किसी मरीज़ का इलाज शुरू कर देता है, तो उसे मरीज की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, और मरीज और मरीज के परिवार को पर्याप्त सूचना दिए बिना इलाज से पीछे नहीं हटना चाहिए। इसके अलावा, डॉक्टरों को जानबूझकर लापरवाही नहीं करनी चाहिए, जिसके चलते कोई मरीज आवश्यक चिकित्सीय देखभाल से वंचित हो जाय।

यदि आपका डॉक्टर इनमें से किसी भी या इन सभी कर्तव्यों में विफल रहा है, तो आप उनके खिलाफ उचित फोरम में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

नैदानिक मनोवैज्ञानिक के खिलाफ शिकायत दर्ज करना

आप नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों के ‘दुराचार’ के संबंध में कई मंचों पर शिकायत दर्ज कर सकते हैं। एक मनोवैज्ञानिक को, किसी भी सामान्य कर्तव्य के उल्लंघन के आधार पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इनमें से कुछ निम्नलिखित मंच हैं:

भारतीय पुनर्वास परिषद (रिहेब्लिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया)

भारतीय पुनर्वास परिषद एक ऐसा मंच है, जो नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों के काम की देखरेख करता है। आप ‘पेशेवर दुराचार’ (प्रोफेशनल मिसकंडक्ट) के आधार किसी पेशेवर के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं। परिषद दोषी पाए जाने पर मनोवैज्ञानिक के नाम को पुनर्वास पेशेवर (रिहेब्लिटेशन प्रोफेशनल्स) के रजिस्टर से स्थायी रूप से या निश्चित अवधि के लिए हटाने का आदेश दे सकता है।

विकलांगता के राज्य आयुक्त / विकलांगता के मुख्य आयुक्त

यदि आप एक विकलांग व्यक्ति हैं, जिनका एक नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक द्वारा इलाज किया जा रहा था, और जिन्होंने अपने कर्तव्यों / नैतिकता का उल्लंघन किया है, तो आपके पास राज्य के विकलांगता विभाग या भारत सरकार विकलांगता मुख्य आयुक्त, से

शिकायत करने का विकल्प है। आप यहां पर राज्य आयुक्तों की सूची देख सकते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड / राज्य मानसिक स्वास्थ्य बोर्ड

यदि आप मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों के लिए मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट द्वारा इलाज करा रहे है, तो आप तीन मुख्य अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं:

  • केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण- यह कानून के तहत एक केंद्रीय प्राधिकरण है, जिसमें केंद्र सरकार के तहत सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करने, देश में सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के रजिस्टर को बनाए रखने, केंद्र सरकार के मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के तहत गुणवत्ता / सेवा मानदंडों के विकास, केंद्र सरकार के तहत सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की देखरेख, सेवाओं के प्रावधान में कमियों के बारे में शिकायतें प्राप्त करना आदि कार्य हैं।
  • राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण- यह राज्य स्तर का प्राधिकरण है, जिसमें राज्य में मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के पंजीकरण, राज्य में मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के लिए गुणवत्ता / सेवा मानदंड विकसित करना, राज्य में सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की निगरानी करना, सेवाओं आदि के प्रावधान में कमियों के बारे में शिकायतें प्राप्त करना आदि कार्य हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड- यह कानूनी तौर पर जिला स्तर का प्राधिकरण है, जिसके पास अग्रिम निर्देश को पंजीकृत करने, समीक्षा करने, परिवर्तन करने, संशोधित करने या रद्द करने, नामांकित प्रतिनिधि नियुक्त करने, देखभाल में कमियों के बारे में शिकायतों को दूर करने आदि के लिए कार्य हैं।

अब तक, विशेष रूप से केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड कार्य कर रहे हैं। हालांकि, कुछ राज्यों, जैसे दिल्ली, केरल, आदि ने राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन किया गया है। आपको अपने संबंधित राज्य से इन प्राधिकरणों के कामकाज के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

प्रशिक्षण बॉन्ड

प्रशिक्षण बॉन्ड क्या हैं?

कुछ मामलों में, नियोक्ता आपसे एक प्रशिक्षण बॉन्ड पर हस्ताक्षर करा सकते है। इस बॉन्ड की शर्तों के अनुसार, आपको उस कंपनी के लिए निर्धारित अवधि तक काम करना होगा। आवश्यक अवधि पूरी होने से पहले आप रोजगार समाप्त नहीं कर सकते। यदि आप करते हैं, तो आपको अपने अनुबंध के अनुसार नियोक्ता को क्षतिपूर्ति करनी होगी।

प्रशिक्षण बॉन्ड पर हस्ताक्षर क्यों किए जाते हैं?

इस प्रकार के बॉन्ड पर आमतौर पर तब हस्ताक्षर किया जाता है जब इसमें कुछ प्रशिक्षण शामिल होता है, जिसकी लागत नियोक्ता द्वारा वहन की जाती है। इसके पीछे विचार यह है कि यदि नियोक्ता आपके प्रशिक्षण में अपने संसाधनों का निवेश कर रहा है, तो उन्हें आपकी प्रतिभा का उपयोग करने और प्रशिक्षण के परिणाम प्राप्त करने में भी सक्षम होना चाहिए। इस प्रकार, नियोक्ता के हितों की रक्षा के लिए आमतौर पर प्रशिक्षण बॉन्ड पर हस्ताक्षर किए जाते हैं।

उदाहरण के लिए, भानु राव को सेंटूर होटल्स में नौकरी का प्रस्ताव दिया गया था। जब उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर ली, तो भानु से एक प्रशिक्षण बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराया गया था जिसमें कहा गया था कि उन्हें कंपनी के लिए न्यूनतम 2 साल की अवधि तक काम करना होगा, जिसमें 6 महीने की प्रशिक्षण अवधि भी शामिल होगी, जिसकी लागत सेंटूर होटल्स द्वारा वहन की जाएगी। यदि उन्हें प्रशिक्षण अवधि समाप्त होने से पहले छोड़ना होता, तो भानु को सेंटूर होटल्स को अपने प्रशिक्षण का खर्च देना पड़ता। डेढ़ साल बाद, भानु को ज्यादा वेतन वाली नौकरी मिल गई और अपने बॉन्ड के 6 महीने शेष रहते, सेंटूर होटल्स छोड़ दिया। अब, सेंटूर होटल्स को उनसे प्रशिक्षण की लागत वसूलने का अधिकार है।

प्रशिक्षण बॉन्ड की राशि

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रशिक्षण बॉन्ड में दी गई राशि उचित होनी चाहिए और आमतौर पर यह प्रत्येक मामलो के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय की जाती है।

पारिवारिक बिजनेस में काम करने वाले बच्चे

बच्चों (14 वर्ष से कम उम्र) और किशोरों को पारिवारिक व्यवसाय में काम करने की अनुमति है।

पारिवारिक व्यवसाय

पारिवारिक व्यवसाय का मतलब किसी भी कार्य या उस व्यवसाय से है, जो परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है या चलाया जाता है। व्यवसाय परिवार (माता, पिता, भाई या बहन) या अन्य रिश्तेदार (पिता की बहन और भाई, या माता की बहन और भाई) द्वारा चलाया जा सकता है।

कार्य के प्रकार

यह ज़रूरी है कि पारिवारिक व्यवसाय में निम्नलिखित शामिल न हों:

  • खतरनाक पदार्थ या प्रक्रिया (कानून में इसके लिए एक शब्द है ‘खतरनाक’ व्यवसाय या प्रक्रिया)।
  • खान, जल्दी आग पकड़ने वाले पदार्थ और विस्फोटक।
  • बच्चों को पारिवारिक व्यवसाय में काम करने की अनुमति है, लेकिन बच्चे की शिक्षा प्रभावित नहीं होनी चाहिए। निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए:
  • उन्हें शिक्षा का अधिकार है।
  • उन्हें केवल स्कूल के बाद या छुट्टियों के दौरान ही काम करने की अनुमति है।
  • कानून के तहत माता-पिता का भी कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें।

कार्यरत किशोरों-किशोरियों के काम के घंटे और दिन

किशोरों को नियुक्त करते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन किया जाना चाहिए (सिवाय जब वे परिवार या सरकार द्वारा वित्त पोषित / मान्यता प्राप्त स्कूलों के साथ काम कर रहे हों)।

एक दिन में एक किशोर:

  • उनसे एक बार में केवल अधिकतम 3 (तीन) घंटे तक ही काम कराया जा सकता है।
  • काम के दौरान उन्हें एक घंटे का आराम मिलना ही चाहिए।
  • उनसे एक दिन में 6 (छह) घंटे से अधिक समय तक काम नहीं लिया जा सकता है। इसमें वह समय भी शामिल है, जिसमें वह काम और आराम दोनों करते हैं।
  • उनसे शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे के बीच काम नहीं कराया जा सकता।
  • उनसे सामान्य काम के घंटों से अधिक काम नहीं कराया जा सकता।
  • वे एक ही दिन में दो नियोक्ताओं के साथ काम नहीं कर सकते।
  • इसके अलावा, उन्हें सप्ताह में एक दिन का अवकाश मिलना चाहिए!
  • यह दिन नियोक्ता द्वारा कार्यस्थल पर एक नोटिस में निर्दिष्ट किया जाएगा। नियोक्ता तीन महीने में एक बार से अधिक इस निर्दिष्ट अवकाश के दिन को नहीं बदल सकता।

यदि एक नियोक्ता के रूप में आप काम के घंटों और दिनों पर कानूनों का पालन नहीं करते हैं और अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते हैं, तो आपको एक महीने तक की जेल हो सकती है या आप पर 10,000 तक रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों लगाए जा सकते हैं।