हिंदू विवाह कानून के अंतर्गत निषेध रिश्ते

यदि जीवन साथी निषेध रिश्ते की सीमाओं में आते हैं, तब उनका विवाह वैध विवाह नहीं होगा। निषेध शादियों के प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • यदि एक जीवन साथी दूसरे का वंशागत पूर्वपुरुष है। वंशागत पूर्वपुरुष में पिता, माता, दादा और दादी के साथ-साथ परदादा और परदादी आदि भी शामिल हैं।
  • यदि एक जीवन साथी किसी वंशागत पूर्वपुरुष की पत्नी या पति है या किसी का वंशज है। वंशागत वंशज में ना केवल बच्चे और पोते पोतियां शामिल होंगे, बल्कि पड़पोते पड़पोतियां और उनके बच्चे भी शामिल होंगे।
  • यदि दो जीवन साथी भाई और बहन, चाचा और भतीजी, चाची और भतीजा, या पहले कज़िन हैं।
  • यदि एक जीवन साथी है
  • पूर्व जीवन साथी या आपके भाई बहन की विधवा (विधुर) या
  • पूर्व जीवन साथी या आपके पिता के या माता के भाई बहन की विधवा (विधुर) या
  • पूर्व जीवन साथी या आपके दादा के या दादी के भाई-बहन की विधवा (विधुर)।

न्यायधिकरण से भरण-पोषण के लिए दावा करना

आप, ‘भरण-पोषण न्यायधिकरण’ (मेंटीनेन्स ट्रिब्यूनल) में ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 के तहत अर्जी दे सकते हैं। आप अपनी अर्जी उस क्षेत्र के भरण-पोषण न्यायधिकरण में दे सकते है जहाँः

  • आप वर्तमान समय में रह रहें हैं, या
  • पहले रह चुके हैं, या
  • जहां आपकी संतान या रिश्तेदार रहते हैं।

जब आप एक बार ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 के तहत न्यायधिकरण में अर्जी देते हैं तब आप आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत (जो भी आपको अधिकार देता है) भरण-पोषण के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। कृपया याद रखें कि इस संहिता के तहत, मासिक भरण-पोषण की राशि पर कोई उच्चतम सीमा नहीं है जिसकी आप मांग कर सकते हैं। हालांकि यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है।

प्रक्रिया

आपके द्वारा अर्जी दिये जाने के बाद (राज्य के आधार पर प्रारूपों में बदलाव होगा) न्यायालय पहले आपके संतानों को सूचित करेगा और उन्हें बतायेगा कि आपने ऐसी अर्जी दायर की है। तब न्यायालय इस मामले को, किसी ‘सुलह समझौता अधिकारी’ को भेज सकता है जो दोनो पक्षों को एक मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए सहमत कराने का प्रयास करेगी। अगर न्यायालय इस मामले को वहाँ नहीं भेजती है तो वह दोनों पक्षों (माता-पिता, संताने या रिश्तेदार) की बात सुनेगी।

न्यायालय यह पता लगाने के लिए जांच कराएगी कि आपको अपने भरण-पोषण के लिये कितना दिया जाना चाहिये। हालांकि यह जांच पूरी तरह से कानूनी कार्यवाही नहीं है। कानूनन इन न्यायालयों में वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व की अनुमति नहीं है लेकिन हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वकीलों के इनके इस अधिकार को सीमित नहीं किया जा सकता। यह न्यायालय स्वभाव से थोड़ा अनौपचारिक है लेकिन इनके पास सिविल कोर्ट की शक्तियां हैं और ये गवाहों की हाजिरी का आदेश दे सकती है, शपथ पर गवाही ले सकती है, इत्यादि।

अगर न्यायालय को पता चलता है कि संताने या रिश्तेदार, माता-पिता की देखभाल करने में लापरवाही कर रहे हैं तो वे उन्हें मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित कर सकते हैं। न्यायालय यह भी आदेश दे सकती है कि आवेदन की तारीख से, भरण-पोषण की राशि पर ब्याज (5% से 8% के बीच) अदा किया जाए। अगर आपके संतान या माता-पिता कोर्ट के आदेश के बाद भी भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहे हैं तो आप इसी तरह की किसी न्यायालय में (‘भरण-पोषण न्यायधिकरण’) जा सकते हैं और उस आदेश को लागू कराने की मदद मांग सकते हैं।

वैध निकाह किसे कहते है?

निकाह की वैधता को निकाहनामा के माध्यम से जांचा जा सकता है, जिसे धार्मिक रूप से मान्य इस्लामी निकाह का अभिन्न अंग माना जाता है। काजी निकाहनामा को बना कर रखते हैं । अगर निकाहनामा न हो तो काजी स्वयं निकाह का गवाह बन सकता है।

निकाह फोन या इंटरनेट के द्वारा भी किया जा सकता है। यह उन मामलों में मान्य होगा जहां पक्ष अपने मौजूदा गवाहों और एक वकील के सामने प्रस्ताव और स्वीकृति देते हैं। गवाहों और पक्षों को वकील के रूप में नियुक्त व्यक्ति से परिचित होना चाहिए और उसका नाम, पिता का नाम और आवासीय पता पता होना चाहिए, जिनका उल्लेख प्रस्ताव और स्वीकृति के समय भी किया जायेगा।

अमान्य/निरस्त हिंदू विवाह

हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 11 के तहत कुछ परिस्थितियां बताई गई हैं जब विवाह निरस्त हो जाता है। विवाह जब निरस्त हो जाता है, तो इसका मतलब यह होता है कि इसे बिल्कुल शुरू से ही स्वतः अमान्य विवाह मान लिया गया है और इसे रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसकी परिस्थितियां निम्नलिखित हैं:

  • दोनों पक्षों में से एक का जीवन साथी विवाह के समय जीवित हो।
  • यदि पक्ष निषिद्ध संबंध की सीमाओं के भीतर हैं, सिर्फ तब, जब कुछ रिवाज इसकी अनुमति दें। उदाहरण- कुछ बिरादरियों में, उनकी रीतियों की विशेषता के कारण निषिद्ध रिश्तों की सीमा के भीतर विवाहों की अनुमति दी जाती है।
  • पक्ष एक दूसरे के सपिंदा हैं, सिर्फ उन मामलों के जहां कुछ रीतियां इसकी अनुमति देती हैं।

इस्लामिक कानून के तहत संरक्षक कौन होता है?

नाबालिग या दिमागी रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के निकाह के लिए संविदा करने का अधिकार संरक्षकों को निम्नलिखित समूहों के अंतर्गत मिलता है:

  • पिता
  • दादाजी, वह जिस भी पीढ़ी के हों
  • पिता की ओर से भाई और अन्य पुरुष संबंधी

अगर ये पैतृक संबंध नहीं हैं तो ये अधिकार जाता है:

  • मां को
  • मामा या मौसी और अन्य मातृ सम्बन्धिओं को

शिया कानून के तहत, नाबालिगों के निकाह के लिए एकमात्र सरंक्षक पिता और दादा होते हैं।

हिंदू विवाह कानून के अंतर्गत शून्यकरणीय विवाह

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, कुछ परिस्थितियां विवाह को शून्यकरणीय बनाती हैं।

यह परिस्थितियां निम्नलिखित हैं:

  • जीवन साथियों में से एक नपुंसक है।
  • यदि विवाह की शर्तें पूरी नहीं की गई हैं। 1978 से पहले, अभिभावक को विवाह करने जा रहे बच्चे की तरफ से सहमति लेनी पड़ती थी। इस प्रथा पर 1978 के बाद अमल नहीं किया गया, इसकी वजह है बाल विवाह रोकथाम (संशोधन) अधिनियम, 1978 का लागू होना।
  • विवाह के समय, महिला अपने पति के बजाय किसी और व्यक्ति से गर्भवती थी।
  • ऐसे मामलों में जहां सहमति धोखे से या जबरदस्ती ली गई थी।

सपिंदा और हिंदू विवाह

सपिंदा रिश्तेदारी या तो पैतृक हो सकती है या फिर मातृक। आप हिंदू विवाह के लिए योग्य नहीं हैं यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करते हैं जो

  1. आपकी माता के परिवार की तरफ से आपसे पिछली तीन पीढ़ियों के अंदर आते हों या आपके पूर्वज समान हों
  2. आपके पिता के परिवार की तरफ से आपसे पिछली पाँच पीढ़ियों के अंदर आते हों या आपके पूर्वज समान हों

हालांकि, किसी ऐसे व्यक्ति से शादी करना जो आपकी सपिंदा रिश्तेदारी में हो उसकी सजा सामान्य जेल है जो एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है, जुर्माना जिसे एक हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों ही, लेकिन ऐसा विवाह अनुमत हो सकता है यदि यह दिखाया गया हो कि आपके समाज/जाति/कबीले में एक स्थापित प्रथा या प्रचलन है जो सपिंदा के बीच विवाह की अनुमति देता है।

‘विशेष विवाह’ या अंतर-धार्मिक विवाह क्या है

नागरिक विवाह, जिन्हें आमतौर पर ‘विशेष विवाह’ या ‘अंतर-धार्मिक विवाह’ भी कहा जाता है, दम्पति के धर्म पर निर्भर नहीं करते हैं। इसके बजाए, विवाह, विशेष विवाह अधिनियम के तहत होता है, जिसके तहत अलग-अलग धर्म का पालन करने वाले जोड़े को भारत में शादी करने का अधिकार है।

इस कानून के तहत शादी करने के लिए, आपको यह पता लगाने की जरूरत है कि क्या आप और आपके जीवनसाथी कानूनी रूप से शादी करने के योग्य हैं या नहीं। उदाहरण के लिए, आपकी उम्र शादी करने की निर्धारित उम्र से अधिक होनी चाहिए और अपने वर्तमान साथी से तलाक लिए बिना आप दूसरी शादी नहीं कर सकते।

अंतर-धार्मिक विवाह के लिए शर्तें

शादी के समय आपको निम्नलिखित परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा:

  • दम्पति में से कोई भी व्यक्ति पहले से शादी-शुदा न हो।
  • दम्पति में से कोई भी व्यक्ति:
    • के मन में किसी भी प्रकार की बेरुखी नहीं होनी चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप विवाह को वैध सहमति देने में असमर्थता पैदा हो।
    • हालांकि, वैध सहमति देने में सक्षम होने के बावजूद कोई भी व्यक्ति मानसिक विकार से पीड़ित न हो, जिससे वे शादी और बच्चे पैदा करने में अयोग्य साबित हों।
    • किसी भी व्यक्ति को बार-बार पागलपन या मिर्गी के दौरें न पड़ते हों।
  • पुरुष की उम्र कम से कम 21 वर्ष और महिला की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
  • कोई भी पक्ष प्रतिबंधित संबंध की डिग्री के भीतर न हों।

रीति-रिवाजों से होने वाली शादियां

ऐसे मामलों में जहां कोई जनजाति, समुदाय, समूह, या परिवार से संबंधित व्यक्ति के लिए रीति-रिवाज शामिल हैं, राज्य सरकार उन्हें नियमित करने और विवाह को विधिपूर्वक पूरा करने के नियम बना सकती है। यह उन मामलों में ज़रूरी नहीं है जहां:

  • इस तरह के रिवाज सदस्यों के बीच लंबे समय से लगातार देखे गए हों।
  • रीति-रिवाज़ या नियम सार्वजनिक नीति के खिलाफ न हों।
  • रीति-रिवाज या नियम, जो केवल एक परिवार पर लागू होते हैं और परिवार अभी भी इस प्रथा को जारी रखे हुए है।

ऐसे मामलों में, जहां विवाह को जम्मू और कश्मीर राज्य में विधिपूर्वक पूरा किया गया है। इसके लिए दोनों पक्षों को भारत का नागरिक होना चाहिए और उन क्षेत्रों का निवासी होना चाहिए, जहां तक अधिनियम लागू होता है।

अधिनियम के तहत अंतर-धार्मिक विवाह के पंजीकरण की प्रक्रिया

विशेष विवाह के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया इस प्रकार है:

विवाह अधिकारी को नोटिस देना

जब भी इस कानून के तहत विवाह किया जाता है, तो विवाह करने वाले दम्पत्ति उस जिले के विवाह अधिकारी को लिखित रूप में नोटिस देंगे। दम्पत्ति में से कम से कम एक व्यक्ति का नोटिस की तारीख से पहले कम से कम तीस दिनों के लिए उस जिले का निवासी होना चाहिए। विवाह के पंजीकरण के लिए दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित आवेदन पत्र प्राप्त करने के बाद, विवाह अधिकारी सार्वजनिक नोटिस देगा और आपत्तियों के लिए तीस दिनों की अनुमति देगा, और उस अवधि के भीतर प्राप्त किसी भी आपत्ति को सुनेगा।

विवाह अधिकारी ऐसे सभी नोटिस अपने कार्यालय के रिकॉर्ड में जमा करेगा और विवाह नोटिस बुक में ऐसे प्रत्येक नोटिस की एक असल कॉपी भी दर्ज करेगा। यह विवाह नोटिस बुक किसी भी व्यक्ति द्वारा, बिना किसी शुल्क के उचित समय पर निरीक्षण के लिए उपस्थित होनी चाहिए।

विवाह अधिकारी अपने कार्यालय में कुछ ध्यान देने योग्य जगह जैसे नोटिस बोर्ड पर एक कॉपी लगाकर इस तरह के हर नोटिस को प्रकाशित करेगा। जब विवाह करने वाले पक्षों में से कोई भी स्थायी रूप से विवाह अधिकारी के जिले में नहीं रहता है, तो अधिकारी उस जिले के विवाह अधिकारी को भी एक भी कॉपी देगा, जहां दोनों पक्ष स्थायी रूप से रह रहे हैं, और विवाह अधिकारी अपने कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर भी इसकी एक कॉपी लगाएगा।

विवाह के लिए घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करना

शादी होने से पहले दोनों पक्ष और तीन गवाह विवाह अधिकारी की उपस्थिति में एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे, और यह घोषणा पत्र विवाह अधिकारी द्वारा भी हस्ताक्षरित किया जाएगा। यह घोषणा अधिनियम की तीसरी अनुसूची में निर्दिष्ट रूप में की जाएगी।

विवाह करना और विवाह का प्रमाणपत्र

जब विवाह संपन्न हो गया है और सभी शर्तें पूरी हो गई हैं, तो विवाह अधिकारी विवाह प्रमाणपत्र बुक में एक प्रमाण पत्र में सभी बातों को दर्ज करेगा। इस प्रमाण पत्र पर शादी करने वाले दोनों पक्षों और तीन गवाहों द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे। यह प्रमाणपत्र तभी बिना किसी विवाद के मान्य होगा, जब विवाह कानूनी रूप से किया गया हो और गवाहों के हस्ताक्षर संबंधित सभी औपचारिकताओं का पालन किया गया हो।